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वय समिदि कसायाणं, दंडाणं तह इंदियाण पंचन्हं । धारण- पालण णिग्गह चाय जओ' संजमो भणिओ ||
व्रत धारण, समिति पालन, कषाय- निग्रह, मन-वचन- शरीर की प्रवृत्ति रूप दण्डों का त्याग, पंचेन्द्रिय-विजय, - इन सबको संयम कहा जाता है ।
- पञ्च संग्रह ( १ / १२७ )
चविहे संजमे
संजमे, वह संजभे, कायसंजमे, उवगरण संजमे ।
संयम के चार रूप हैं - मन का संयम, वचन का संयम, देह का संयम और उपगरण का संयम ।
- स्थानांग (४ / २ )
एगओ विरई कुज्जा, एगओ य असंजमे नियत्ति च, संजमे य
एक ओर से निवृत्ति और एक ओर प्रवृत्ति करनी चाहिये - असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति ।
पवत्तणं । पवत्तणं ॥
—उत्तराध्ययन ( ३१/२ )
जत्तियाई असंजमट्टाणाई, तत्तियाई संजमट्टाणाई ॥ संसार के जितने असंयम के स्थान है, उतने ही संयम के स्थान है । - आचारांग चूणि ( १/४/२ )
गरहा संजमे, नो अगरहासंजमे ।
आत्म-आलोचन संयम है, अगह संयम नहीं है ।
संयमासंयम
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- भगवती सूत्र ( १/६ )
संजम - विराय - दंसण- जोगभावो य संवरओ ।
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संवर
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