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भूतार्थनय से जाने गये जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव-संवर, निर्जरा, बन्ध-मोक्ष-ये नव तत्त्व ही सम्यक्त्व हैं।
-समयसार (१३) मा कासि तं पमादं सम्मत्ते सन्वदुःख णासयरे। सम्यक्त्व सर्व दुःखों का नाश करनेवाला है, अतः इसमें प्रमादी मत बनो।
-भगवती-आराधना (७३५) सम्मत्त विरहिया णं, सुछ वि उग्गं तवं चरंता णं ।
ण लहंति बोहिलाहं, अवि वाससहस्सकोडीहिं॥ सम्यक्त्व-विहीन व्यक्ति हजारों करोड़ वर्षों तक भली-भांति उग्र तप करने पर भी बोधि-लाभ प्राप्त नहीं करता।
-दर्शनपाहुड़ (५)
सरलता एगमविमायी मायं कटू आलोएज्जा।
जाव पडिवज्जेजा अत्थि तस्स आराहणा॥ जो प्रमादवश हुए कपटाचरण के प्रति आलोचना करके सरल हृदय हो जाता है, वह धर्म का आराधक है।
-स्थानांग (८) जह बालो जंपतो, कजमकज्जं च उज्जुयं भणइ ।
तं तह आलोइजा, मायामयविप्पमुक्को उ॥ जिस प्रकार वालक बोलता हुआ कार्य तथा अकार्य को सरलता से कह देता है, उसी प्रकार सरलता से अपने दोषों की आलोचना करनेवाला साधक माया एवं मद से मुक्त होता है ।
-महाप्रत्याख्यान-प्रकीर्णक (२२) सो ही उज्जुअभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई ।
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