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सुहिओ हु जणो सुन बुज्झई । सुखी व्यक्ति प्रायः शीघ्र नहीं जग पाता है।
-उत्तराध्ययन-चूर्णि ( अ० ५८) दाणं मग्गण-दव्वं, भांडं लंचा-सुभासियं वयणं ।
जं सहसा न य गहियं, तं पच्छा दुल्लहं होइ ॥ दान, मांगा हुआ द्रव्य, बर्तन, घूस, सुभाषित वचन यदि शीघ्र ग्रहण न किया जाय तो वह पीछे दुर्लभ हो जाता है ।
-कामघट-कथानक (१०७)
बुढ़ापा तिण्हालजानासो भयबाहुल्ल विरूवभासित्तं ।
पाएण मणुस्साणं दोसा जायन्ति कुड्ढते ॥ बुढ़ापे में मनुष्यों के प्रायः तृष्णा, लज्जा का नाश, भय की बहुलता, विपरीत बोलना आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं।
-आख्यानमणिकोश (६२/१३ )
ब्रह्मचर्य
पुरिसेण सह गयाए तेसि जीवाण होइ उद्दवणं ।
वेणुमदिळं तेण तत्ताय सलागणाएणं ॥ जिस समय पुरुष स्त्री के साथ संयोग करता है, उस समय जैसे अग्नि से तपायी हुई लोहे की सलाई की बांस को नली में डालने से नली में रखे तिल भस्म हो जाते हैं, वैसे ही पुरुष के संयोग से योनि में रहनेवाले सम्पूर्ण जीवों का नाश हो जाता है।
-स्याद्वाद-मंजरी ( २३/२७६/१५/५) अबंभचरियं घोरं, पमायं दुरहिट्ठियं । नाऽऽयन्ति मुणी लोए, भेयाययणवाजिणो ॥
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