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ज्ञान प्रकाश फेलानेवाला है, तप विशद्धि करता है और संयम पापों को अवरुद्ध करता है। तीनों के समयोग से ही मोक्ष होता है-यही जिनशासन की वाणी है।
-आवश्यकनियुक्ति (१.३) णाण तवेण संजुत्तो लहइ णिवाणं । ज्ञान व तप दोनों से संयुक्त होने से ही निर्वाण प्राप्त होता है ।
-मोक्षपाहुड़ (५६) विवेगो मोक्खो। वस्तुतः विवेक ही मुक्ति है ।
-आचारांग-चूर्णि ( १/७/१) गिहि-वावार परिट्ठिया हेयाहेउं मुणं ति। जो गृहस्थी के धन्धे में रहते हुए भी हेयाहेय को समझते हैं और जिन भगवान् का निरन्तर ध्यान करते हैं, वे शीघ्र ही निर्वाण को पाते हैं।
-योगसार-योगेन्दुदेव (१८)
दसण णाण चारित्ताणि मोक्ख मग्गो। दर्शन, ज्ञान, चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है ।
--पंचास्तिकाय (१६४) जे जत्तिआ अ हेउं भवस्स, ते चेव तत्तिआ मुक्खे। जो और जितने हेतु संसार के हैं, वे और उतने ही हेतु मोक्ष के हैं ।
-~-ओघनियुक्ति (५३) मोक्खमग्गं सम्मत्तसंयम सुधम्म । मोक्ष-मार्ग सम्यक्त्व, संयम आदि सुधर्म रूप है ।
-बोधपाहुड़ (१४) तं जइ इच्छसि गंतुं, तीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तवसंजमभंडं, सुविहिय ! गिण्हाणि तुरंतो॥
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