Book Title: Prakrit Sukti kosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jayshree Prakashan Culcutta

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Page 262
________________ गारात्थिवणे, फरुसवयणे, विउसवितं वा पुणो उदीरितए । असत्य वचन, तिरस्कारित वचन, झिड़कते हुए वचन, कटु वचन, अविचार पूर्ण वचन और शान्त हुए कलह को पुनः भड़काने वाले वचन- - ये छः तरह के वचन कदापि न बोलें । वयसा वि एगे बुइया कुप्पंति माणवा । कुछ मनुष्य थोड़े से प्रतिकूल वचन से भी कुपित हो जाते हैं । सत्य वचनों में अनवद्य वचन श्रेष्ठ है । सुच्चेसु वा वयणं वयंति | मा कडुयं भणह जणे मधुरं, पडिमणह गेण्हिऊण इच्छह लोए -सूत्रकृतांग ( ६/१/२३ ) कडुयभणिया वि । जइ सुहयत्तण-पडायं ॥ यदि संसार में अच्छेपन की ध्वजा लेकर चलना चाहते हो तो लोगों को कडुआ मत बोलो और उनके द्वारा कडुआ बोले जाने पर भी मधुर वचन बोलो | - कुवलयमाला ( अनुच्छेद ८५ ) जल - चंदण-ससि मुत्ता चंदमणी तह णरस्स णिव्वाणं । ण करंति कुणइ जह अत्थज्जुयं हिय-मधुर-मिद-वयणं ॥ २४२ 1 -- स्थानांग ( ६ / ३ ) - आचारांग (१/५/४ ) - जल, चन्दन, चन्द्रमा, मुक्ताफल, चन्द्रमणि आदि मनुष्य को उस प्रकार सुखी नहीं करते हैं, जिस प्रकार अर्थ युक्त, हितकारी मधुर, और संयत वचन सुखी करते हैं । हासेण वि मा भण्णऊ, णयरं जं मजाक के द्वारा भी मर्म वेधक और व्यर्थ के Jain Education International 2010_03 - अर्हतु प्रवचन ( १२ / १२ ) मम्मवेहणं वयणं । वचन मत बोलो । - कुवलयमाला ( अनुच्छेद ८५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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