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जो सदा गुरुकुल में वास करता है, जो समाधि युक्त होता है, जो उपधान तप करता है, जो प्रिय करता है, जो प्रिय बोलता है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
- उत्तराध्ययन (११/१४)
शिक्षाशील अह अहहिं ठाणेहि, सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहिस्सरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए।
अकोहणे सच्चरए, न सिक्खासीले त्ति वुच्चई ।। इन आठ स्थितियों या कारणों से मनुष्य को शिक्षाशील कहा जाता है : १. हँसी-मजाक नहीं करना, २. सदा इन्द्रिय और मन का दमन करना, ३. किसी का रहस्योद्घाटन न करना, ४. अशील ( सर्वथा आचारहीन) न होना, ५. निशील (दोषों से कलंकित ) न होना, ६. अति रसलोलुप न होना, ७. अक्रोधी रहना तथा ८. सत्यरत होना ।
-उत्तराध्ययन (११४४,५)
शिष्य
आयरियस्स वि सीसो सरिसो,
सव्वे हि वि गुणेहिं॥ यदि शिष्य गुणसम्पन्न है, तो वह अपने आचार्य के सदृश माना जाता है ।
-उत्तराध्ययन निर्यक्ति (५८) ।
হীল सीलं उत्तमवित्तं, सीलं जीवाण मंगलं परमं । सीलं दोहग्गहरं, सीलं सुक्खाण कुलभवणं ।।
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