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विनयपूर्वक प्राप्त की गयी विद्या इस लोक तथा परलोक में फलदायिनी होती हैं और विनय हीन विद्या फलप्रद नहीं होती, जैसे बिना जल के धान्य नहीं
उपजता ।
- बृहत्कल्पभाष्य ( ५२०३ )
विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणीयस्स य ॥ विनय विपत्ति ( दुःख ) में गिरता है, जब कि विनयी सम्पत्ति ( सुख ) प्राप्त करता है ।
-- दशवेकालिक ( ६/२/२१ )
मोहो विण्णाण विवश्वासो ।
विनीत की विद्याएँ सर्वत्र सफल होती हैं ।
- निशीथ चूर्णि (२६ )
सत्तू
वि मित्त भावं, जम्हा उवयाइ विणय सीलस्स ।
शत्रु भी विनयशील व्यक्ति का मित्र बन जाता है ।
आणानिदेसकरे,
गुरुणमुववायकारए ।
इंगियागार संपन्ने, से विणीए त्ति वुश्च ॥
विनीत
- वसुनन्दि - श्रावकाचार ( ३३६ )
जो गुरुजनों की आज्ञा का यथोचित पालन करता है, उनके निकट सम्पर्क में रहता है एवं उनके हर संकेत तथा चेष्टा के प्रति सजग रहता है - वह विनीत कहलाता है ।
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- उत्तराध्ययन ( १/२ )
तहेव सुविणीयप्पा, लोगंसि दीसंति सुह मोहंता, इड्ढि पत्ता लोक में जो पुरुष या स्त्री सुविनीत होते हैं, को पाकर सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं
।
- दशवैकालिक (६/२/६)
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नरनारिओ । महायसा ||
वे ऋद्धि और महान् यश
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