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areer दिक्खियाए, अज्जाए अज्ज दिक्खिओ साहू | वंदण णर्म-सणेण विणरण सो पुज्जो ॥
अभिगमण
सौ वर्ष की दीक्षित साध्वी आज के दीक्षित साधु की अगवानी करे, बन्दन करे, नमस्कार करे, विनय के साथ आसन दे और यह समझे कि यह पूज्य है ।
- सार्थपोसहसज्झाय सूत्र ( १४ )
साली भरेण तोरण, जलहरा फलभरेण तरु सिहरा । विणणय सप्पुरिसा, नमन्ति न हु कस्स वि भएण ॥ गुच्छों के भार से धान्य के पौधे, पानी से मेघ, फलों के भार से वृक्षों के शिखर और विनय से सज्जन पुरुष झुक जाते हैं, किन्तु किसी के भय से नहीं झुकते हैं ।
- साहसी अगड़दत्तो (७६)
fareण विप्पहूणस्स हवदि सिक्खा णिरत्थिया सव्वा । विणओ सिक्खा फलं वियफलं सव्वकल्लाणं ॥
विनय से रहित व्यक्ति की सारी शिक्षा निरर्थक हो जाती हैं । विनय शिक्षा का फल है और विनय का फल सबका कल्याण है ।
- जीवण ववहारो ( १६/५५ )
विणण णरो, गंधेण चंदणं सोमयाइ रयणियरो | महुररसेण अमयं जणपियत्तं लहइ भुवणे ||
जैसे सुगन्ध के कारण चंदन, सौम्यता के कारण चन्द्रमा और मधुरता के कारण अमृत जगत्प्रिय हैं ऐसे ही विनय के कारण व्यक्ति लोगों में प्रिय बन जाता है ।
- धर्मरत्नप्रकरण ( १ अधिकार )
विणयाहीया विज्जा, देति फलं इह परे य लोगम्मि |
न फलंति विणयहीणा, सस्साणि व तोय हीणाई ॥
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विनय- अविनय
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