________________
समस्त लोक के, यहाँ तक कि देवताओं के भी, जो कुछ भी शारीरिक और मानसिक दुःख हैं, वे सब कामासक्ति से पैदा होते हैं। वीतरागी उन दुःखों का अन्त कर जाते हैं ।
--उत्तराध्ययन ( ३२/१६ )
वीर
एस वीरे पसंसिए, जे बद्ध पडिमोसए। वही वीर प्रशंसित होता है, जो अपने को तथा दूसरे को दासता के बंधन से मुक्त कराता है।
-आचाराग ( १/२/५ ) सुच्चिय सूरो सो, इंदिय चोरेहि सया, न लुटिअंजल्स चरणधणं।
वही सच्चा शूरवीर है। जिसके चारित्र रूपी धन को इन्द्रिय रूपी चोरों ने लूटा नहीं है।
-इन्द्रिय-पराजय-शतक (१)
वीरता वीरिएणं त जीवस्स, समुच्छलिएणं गोयमा ।
जम्मतरकए पावे पाणी मुहुत्तण निद्दहे ॥ हे गौतम ! जिस समय इस जीव में वीरता का सञ्चार होता है तो यह जीव जन्म-जन्मान्तर में किये पापों को एक मुहूर्त-भर में धो डालता है।
-गच्छाचार-प्रकीर्णक (६)
वेश किं परियत्तिय वेसं, विसं न मारेइ खज्जतं। . क्या वेश बदलनेवाले व्यक्ति को खाया हुआ विष नहीं मारता ?
--उपदेशमाला (२१)
[ २१६.
____Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org