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जो मैत्री जल एवं दूध के समान नहीं है, उससे क्या लाभ ? जल जब मिलता है तब दूध को अधिक बना देता है और औटाने पर वह पहले जलता है । अर्थात आपत्ति में भी वही पहले काम आता है ।
-वज्जालग्ग (६/३) मेत्तिं भूएसु कप्पए। सब जीवों के प्रति मैत्री का आचरण करे ।
-उत्तराध्ययन (६/२) 'मित्ती भावमुवगए यावि जीवे भावविसोही काऊण निम्भए भवइ ।
मैत्री-भाव को प्राप्त हुआ जीव भावना को विशुद्ध बनाकर निर्भय हो जाता है।
-उत्तराध्ययन ( २६/१७)
मोक्ष जं अप्पसहावादो मूलोत्तर पयडि संचियं मुच्चइ, तं मुक्ख ।
आत्म-स्वभाव से मुल व उत्तर कर्म-प्रकृतियों के संचय का छूट जाना मोक्ष है।
-नयचक्र बृत्ति ( १५६) ण वि दुक्खं ण वि सुक्खं, ण वि पीडा व विज्जदे बाहा । ण वि मरणं ण वि जणणं तत्थेव य होइ णिव्वाणं ॥
जहाँ न दुःख है, न सुख, न पीड़ा है, न बाधा, न मरण है न जन्म, वही निर्वाण है।
-नियमसार ( १७६) ण वि इंदिय उवसग्गा, ण वि मोहो विम्हयो ण णिहाय । ण य तिण्हा व छुहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं ॥
जहाँ न इन्द्रियाँ हैं न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है न तृष्णा और न भूख, वही निर्वाण है।
-नियमसार ( १८०)
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