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विणए ठबिज्ज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो ।
आत्मा का कल्याण चाहनेवाला साधक स्वयं को विनय में स्थिर करें ।
- उत्तराध्ययन ( १/५ )
व
अंजलिकरणं,
तदेवासणदायणं ।
अभुट्ठाणं गुरु भक्तिभाव सुस्सा, विणओ एस वियाहिओ ।
गुरु तथा वृद्धजनों के समक्ष आने पर खड़े होना, हाथ जोड़ना, उन्हें उच्च आसन देना, गुरुजनों की भावपूर्वक भक्ति तथा सेवा करना विनय है ।
- उत्तराध्ययन ( ३० / ३२ )
विणयमूले धम्मे पण्णत्ते ।
विनय धर्म का मूल कहा गया है ।
-ज्ञाताधर्म - कथा ( १/५ )
बालुत्ति महीपालो णपया ।
बालक राजा का भी प्रजा तिरस्कार नहीं करती है ।
--सार्थपोसह सज्झाय - सूत्र ( ८ )
जं आणवेइ राया पयइओ, तं सिरेण इच्छति । इय गुरुजण मुह भणियं, कयंजली उडेहिं सोयव्वं ॥
राजा की आज्ञा को अनुचर लोग बड़े श्रम से पूर्ण करने की इच्छा करते हैं, ठीक उसी तरह गुरुजनों के मुख से कही हुई बातों को दोनों हाथ जोड़कर सुनना चाहिये ।
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- सार्थपोसह सज्झाय-सूत्र ( ६ )
दिण दिक्खियस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्जचंद्णा अज्ज । णेच्छइ आसण गहणं, सो विणओ सव्व अज्जाणं ॥
केवल एक दिन का दीक्षित साधु आर्या चन्दनबाला के सामने आया । पर जब तक वह खड़ा रहा, तब तक चन्दनबाला अपने आसन पर नहीं बैठी । यही विनय सभी साध्वियों का आदर्श है ।
- सार्थपोसह सज्झायसूत्र ( १२ )
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