________________
खंडो ण मुंबइ वेरं भंडणसीलो य धम्मदयरहिओ ।
"
दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्खण मेयं तु किण्हस्स ||
स्वभाव की प्रचण्डता, वैर की मजबूत गाँठ, झगड़ालू वृत्ति, धर्म और दया - से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं मानना - - ये कृष्ण-लेश्या लक्षण हैं I - गोम्मटसार - जीवकाण्ड (५०६ )
मंद बुद्धि विहीणो, णिव्विणाणी या किसय लोलो य । लक्खणमेयं भणियं, समासदो णीलले स्सस्स ॥
मन्दता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषय- लोलुपता - ये संक्षेप में नीललेश्या के लक्षण हैं ।
रूसइ दिइ अन्ने, दूसइ बहुसो य सोयमय बहुलो । पण गणइ कज्जाकज्जं, लक्खणमेयं तु काउस्स ||
- गोम्मटसार जीवकाण्ड (५११ )
शीघ्र रुष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा - आलोचना करना, दोष लगाना, अतिशोकाकुल होना, अत्यधिक भयभीत होना-ये कापोतलेश्या के लक्षण हैं । - गोम्मटसार जीवकाण्ड (५१३ )
जाणइ कज्जाकज्जं, सेयमसेयं च सव्वसमपासी, दयदाणरदोय य मिदू, लक्खणमेयं तु तेउस्स ॥
कार्य कार्य का ज्ञान, श्रेय अश्रेय का विवेक, सभी के प्रति समभाव, दया दान में प्रवृत्ति - ये पीत या तेजो लेश्या की विशेषतायें हैं ।
- गोम्मटसार - जीवकाण्ड (५१५ )
1
चामी भद्दो चोक्खो, अज्जवकम्मो य खमदि बहुगं पि साहुगुरुपूजणरदो, लक्खणमेय तु पम्मस्स ॥
त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरुजनों की पूजा सेवा में तत्परता - ये सब पद्मलेश्या के लक्षण हैं ।
ऋजुता,
-- गोम्मटसार - जीवकाण्ड ( ५१६ )
२०४ ]
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org