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छन्दों में रचित, सुन्दर शब्दों एवं उपमादि अलंकारों से युक्त और सरस उक्तियोंवाली गाथा, पढ़ने पर वैसे ही रस प्रदान करती है जैसे कामिनी कामी को।
-वज्जालग्ग (२/४ ) गाहाण रसा ... ... कइजणाण उल्लावा।
कस्स न हरंति हिययं बालाणं य मम्मणुल्लावा ॥ गाथाओं के रत, कवियों की उक्तियाँ और बालकों के अव्यक्त शब्दतोतली बोली, किसका मन नहीं मोह लेते हैं !
-वज्जालग्ग ( २/५) गाहा रुअइ वराई सिक्खिज्जती गवारलोएहि ।
कीरइ लुचपलुंचा जह गाई मंददोहेहि ॥ जब गँवार लोग सीखने लगते हैं, तब बेचारी गाथा रो पड़ती है। वे वैसे ही उसे नोंच-खरोंच डालते हैं, जैसे अनाड़ी दुहनेवाला गाय को।
-वज्जालग्ग ( २/७) गाहाणं...ताणं चिय सो दंडो जे ताण रस न याणति । जो गाथाओं का रस नहीं जानते, उनके लिए यही दण्ड है कि वे आनन्द से वंचित रह जाते हैं।
-वज्जालग्ग (२/६) सित्थेण दोण पागं,
कविं च एकाए गाथा। एक कण से द्रोणभर पाक की परीक्षा हो जाती है और एक गाथा से ही कवि की कसौटी हो जाती है।
-~-अनुयोगद्वार सूत्र ( ११६)
गुण-दर्शन मा दोसेच्चिय गेण्हह विरले वि गुणे पयासह जणस्स।
अक्ख-पउरो वि उयही, भण्णइ रयणायरो लोए । १०४ ]
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