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नाणफला भावाओ, मिच्छादिट्ठिस्स अण्णाणं । सदाचार का अभाव होने से मिथ्या दृष्टि का ज्ञान अज्ञान है । - विशेषावश्यक - भाग्य ( ५२१ )
सव्वं खिय पइसमयं, उप्पज्जइ नासए यनिच्वं च । संसार का हरेक पदार्थ प्रतिक्षण पैदा भी होता है, नष्ट भी होता है और साथ ही नित्य भी रहता है ।
हे उप्पमवो बन्धो ।
आत्मा को कर्मबन्ध मिथ्यात्व आदि हेतुओं से होता है ।
- विशेषावश्यक भाष्य ( ५४४ )
सुहदुक्खसंपओगो, न एगंतुच्छे अंमि य, सुहदुक्ख सुहदुक्ख
- दशवेकालिक - निर्युक्ति-भाष्य ( ४६ )
विज्जई निव्यवाय पक्खं मि
विगप्पणजुत्तं ॥
एकांत नित्यवाद के अनुसार सख-दुःख का संयोग संगत नहीं बैठता और एकान्त उच्छेदवाद - अनित्यवाद के अनुसार भी सुख दुःख की बात उपयुक्त नहीं होती । अतः नित्यानित्यवाद ही इसका सही समाधान कर सकता है । - दशवेकालिक नियुक्ति (६०)
जावइया ओदइया सव्वो कर्मोदय से प्राप्त होनेवाली जितनी भी
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तह ववहारेण विणा, परमत्थुवएसणसक्कं । बिना व्यवहार के परमार्थ का उपदेश करना अशक्य है ।
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सो बाहिरो जोगो । अवस्थाएँ हैं, वे सब बाह्य योग हैं । - उत्तराध्ययन-निर्युक्ति (८)
ववहारणयो भासदि, जीवो देहो य हवदि खलु इक्को । ण दु णिच्छयस्स जीवो, देहो य कदापि एकट्ठो ॥ व्यवहार नय से जीव और देह एक-से प्रतीत होते हैं, किन्तु निश्चयदृष्टि से जीव और देह दोनों अलग हैं, एक कदापि नहीं हैं ।
- समयसार (२७ )
- समयसार ( ८ )
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