________________
जिसके द्वारा ऊपर उठाये गये और जिसके द्वारा उनका प्रताप प्रकट हुआ उसी विन्ध्य पर्वत को शबर जला डालते हैं। दुष्टों का मार्ग ही विचित्र है।
-वज्जालग (५/१४)
दुर्जन-प्रशंसा सो जयउ जेण सुयणा वि दुज्जणा इह विणिम्मिया भुवणे । ण तमेण विणा पावन्ति चन्द-किरण वि परिहावं ॥
वह विजयी हो जिसके द्वारा सज्जनों की तरह दुर्जन भी इस लोक में बनाए गए हैं क्योंकि अधंकार के बिना चंन्द्रमा की किरणें भी गुणोत्कर्ष को नहीं पाती है।
-लीलावइ कहा (१३)
धर्म जत्थ य विसयविराओ, कसायचाओ गुणेसु अणुराओ। किरिआसु अप्पमाओ, सो धम्मो सिवसुहो लोएवाओ॥
जिसमें विषय से विराग, कषायों का त्याग, गुणों में प्रीति और क्रियाओं में अप्रमादीपन है, वह धर्म ही जगव में मोक्षसुख देनेवाला है।
-विकारनिरोध-कुलक (६) धम्मोमंगल मुक्किळं, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥ अहिंसा, संयम और तप रूप शुद्ध धर्म उत्कृष्ट मंगलमय है। जिसका मन सदा धर्म में लीन रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं ।
-दशवेकालिक (१/१) धम्मो वत्थु सहावो। वस्तु का अपना स्वभाव ही उसका धर्म है ।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा (५)
[ १४
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org