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जीवाणं रक्खणं धम्मो॥ जीवों की रक्षा करना धर्म है ।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा (४६८) धम्मा-धम्मा न परप्पसाय-कोपाणुवत्तिओ जम्हा। धर्म और अर्धम का सम्बल आत्मा की परिणति ही है। दूसरों की प्रसन्नता और क्रोध पर उसकी व्यवस्था नहीं है ।
-विशेषावश्यक-भाष्य ( ३२५४ )
धम्मो दया विसुद्धो। जिसमें दया की पवित्रता है, वही धर्म है ।
-बोध-पाहुड़ ( २५) सव्वसत्ताण अहिंसादिलक्खणो धम्मो पिता, रक्खणत्तातो।
अहिंसा, सत्य आदि रूप धर्म सब प्राणियों का पिता है, क्योंकि वही सब का रक्षक है ।
-नन्दीसूत्र-चूर्णि (१) आदा धम्मो मुणेदव्यो। धर्म आत्म-स्वरूप होता है।
-प्रवचनसार ( १/८) धम्मे अणुज्जुतो सीयलो, उज्जुत्तो उण्हो । धर्म में उद्यमी ( क्रियाशील ) उष्ण है, उद्यमहीन शीतल है ।
-आचाराग चूर्णि ( १/३/१) उत्तमखममद्दवज्जव-सच्चसउच्चं च संजमं चेव ।
तवचागम किंचण्हं बम्ह इदि दसविहो धम्मो ॥ उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, तथा उत्तम ब्रह्मचर्य-ये दस धर्म हैं।
-बारस अणुवेक्खा (६०) १४४ ]
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