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परिणाम से बन्ध है, परिणाम राग, द्वेष, मोह से युक्त है ।
-प्रवचनसार ( १८०) जो खलु संसारत्थो, जीवो तत्तो दु होदि परिणामो। परिणामादो कम्म, कम्मादो होदि गदिसु गदी॥
संसारी जीव के परिणाम (राग-द्वेष रूप ) होते हैं। परिणामों से कर्मबन्ध होता है। कर्म-बन्ध के कारण जीव चार गतियों में परिभ्रमण करता है. जन्म लेता है।
--- पञ्च स्तिकाय (१२८)
परोपजीवी जो जणयज्जियलच्छि, उवभुंजइ अहमचरिओ सो। जो पिता के द्वारा कमाई हुई लक्ष्मी का उपभोग करता है वह अधम चारित्रवाला है।
–पाइअकहासंगहो (१८) कि पढिएणं बुद्धीए कि, व किं तस्स गुणसमूहेण ।
जो पियरविदत्तधणं, भुंजइ अजणसमत्थो वि॥ उसके पढ़ने से क्या, बुद्धि से अथवा उसके गुण समूह से क्या ( लाभ) जो कमाने में समर्थ होता हुआ भी पिता के द्वारा अर्जित धन को खाता है।
-पाइअकहासंगहो (१६)
पाप पावाणं जदकरणं, तदेव खलु मंगलं परमं । पाप-कर्म न करना ही वस्तुतः परम मंगल है ।
-बृहत्कल्पभाष्य (८१४) २६६ ]
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