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जिस घड़े के पेंदे में छिद्र हो गया है, उसमें जल आदि तरल पदार्थ कैसे टिक सकते हैं।
-वृहत्कल्पभाष्य ( ४३६३) रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरे णं चेव ।
पक्खालिजमाणस्स णथि सोही ॥ रक्त से सना वस्त्र रक्त से धोने से स्वच्छ नहीं होता है, उसके लिए तो शुद्ध जल की आवश्यकता है ।
-ज्ञाताधर्म-कथा (श)
मइलो पडो रंगिओ न सुन्दरं भवइ । मलिन कपड़ा रंगने पर भी सुन्दर नहीं होता है ।
-दशवैकालिक-चणि ( अध्ययन-४) अजियं जिणाहि, जियं च पालेहि । अविजित शत्रुओं को जीतो और जीते हुए का पालन करो।
-औपपातिक-सूत्र (५३) सो अप्पणो परल्स वा आवतीए
वि न परिच्चयति, सो बंधू । जो अपने अथवा अन्य के संकट-काल में भी अपने स्नेही का साथ नहीं छोड़ता, वह बंधु है।
-नंदीसूत्र-णि (१) खंडसंजुतं खीरं पित्तजरोदयतो ण सम्म भवइ । खाँड मिला हुआ मधुर दूध भी पित्त ज्वर में ठीक नहीं रहता है ।
-नंदीसूत्र-णि (७१) चितिज्जइ जेण तं चित्तं। जिससे चिंतन किया जाता है, वह चित्त है ।
-नंदीसूत्र-णि ( २/१३) १८४ ]
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