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तत्त्व-दर्शन जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति ।
नो अचेयकडा कम्मा कजंति ॥ आत्माओं के कर्म चेतनाकृत होते हैं, अचेतनाकृत नहीं ।
-भगवती सूत्र (१६/२) नेरइया सुत्ता, नो जागरा। आत्म-जागरण की दृष्टि से नारकीय जीव सोये रहते हैं, जागते नहीं।
-भगवती सूत्र ( १६/६) अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे । आत्मा का दुःख अपना ही किया हुआ है, किसी अन्य का नहीं ।
-भगवती सूत्र (१७/५ ) उप्पज्जति वियंतीय, भावानियमेण पज्जवनयस्स। दवढियस्स सव्वं, सया अणुप्पन्नविणढें ॥ पर्याय-दृष्टि से सभी वस्तुएँ नियमानुसार उत्पन्न भी होती हैं और नष्ट भी, किन्तु द्रव्य-दृष्टि से सभी वस्तुएँ उत्त्पत्ति एवं विनाश से रहित सदा कालधू व हैं।
-सन्मतिप्रकरण ( १/११) दव्वं पज्जवविउयं, दवविउत्ता य पज्जवा णस्थि । उप्पायट्टिई-भंगा, हंदि दवियलक्खणं एयं ॥
द्रव्य पर्याय के बिना नहीं होता है और पर्याय द्रव्य के बिना नहीं होती है । इसलिए द्रव्य का लक्षण उत्पाद, नाश और धू व रूप है।
-सन्मतिप्रकरण ( १/१२) तम्हा सव्वे विणया, मिच्छादिट्ठी सपक्खपडिबद्धा। अण्णोण्णिस्सिया उण, ध्ववि सम्मत्त सम्भावा ।।
अपने-अपने पक्ष में ही प्रतिबद्ध परस्पर निरपेक्ष सभी मत मिथ्या है, १२४ ]
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