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जस्स असणमप्पातं पि तवो तप्पडिच्छगा समणा । भिक्खमणेसमध ते
अण्ण
समणा अणाहारा ॥
पर-वस्तु की आसक्ति से रहित होना ही आत्मा का निराहार रूप वास्तविक तप है और जो श्रमण भिक्षा में दोषरहित शुद्ध आहार ग्रहण करता है, वह निश्चय दृष्टि से तपस्वी है ।
निडणो वि जीव पोओ, तव संजममारु अविहूणो ।
शास्त्र - ज्ञान में कुशल साधक भी तप, संयम रूप पवन के बिना संसारसिन्धु को तैर नहीं सकता है ।
जत्थ
कलायणिरोहो,
बंभं जिणपूयण अणसण च ।
सो सव्वो चेव
तवो ॥
- प्रवचनसार (३/२७)
जहाँ कषायों का निरोध, ब्रह्मचर्य का पालन, जिन पूजन तथा आत्मलाभ के लिए अनशन किया जाता है, वह सब तप है ।
- पंचास्तिकाय (१८ / २६ )
विनय भी तप का एक प्रकार है ।
-- आवश्यक- नियुक्ति (९६ )
विणओ वि तवो ।
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अवसमणो अक्खाण, उववासो वण्णिदोसमासेण ।
इन्द्रियों के उपशमन को ही उपवास कहा गया है ।
इहलोग ट्टयाए,
परलोग ट्ट्याए,
- प्रश्नव्याकरण सूत्र ( २/४ )
नो
तवमहिदिज्जा ।
नो
तवमहिट्ठिज्जा ॥
नो कित्तीबसह सिलोगट्ट्याए तव महिट्ठिज्जा ।
निज्जरट्ठयाए
'तवमहिट्ठिज्जा |
नन्नत्थ
- कार्तिकेयानुप्रेक्षा ( ४३६ )
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