________________
पावं खमइ असेसं, खमाय पडिमंडिओ य मुणिपवरो ।
जो मुनिप्रवर क्रोध के अभावरूप क्षमा से मंडित है, वह समस्त पाप कर्मों का अवश्य क्षय करता है ।
खमिव्वं खमावियव्वं, जो उवसमई अत्थि
क्षमा माँगनी चाहिए, क्षमा देनी चाहिए । कषायों का उपशमन कर लेता है, वही आराधक है ।
- भावपाहुड़ (१०८) तरस आराहणा ।
जो क्षमा-याचना करके
गच्छाधिपति
नाणंमि दंसणम्मि अ, वरणंमि यतिसुषि समयसारेसु । गणमप्पाणं व सो अ गणी ॥
चोएर जो ठवेडं,
जिनवाणी का सार ज्ञान, दर्शन और चारित्र है जो अपनी आत्मा को तथा समस्त गण को इन तीन गुणों में स्थापन करने के लिए प्रेरणा करता है, वही वास्तव में गच्छाधिपति हैं ।
- कल्पसूत्र (३ / ५६ )
- गच्छाचार - प्रकीर्णक ( २० )
अप्परिस्सावि सम्मं, समपाली चेव होइ कज्जेसु । सो रक्ख वक्खुं पिव, सबालबुड्ढाउलं गच्छं ॥
Jain Education International 2010_03
जो आचार्य गच्छ के नानाविध कार्यों को समभाव - पूर्वक करता हुआ अपनी भावनाओं में तनिक भी मलिनता नहीं आने देता, वह आचार्य गच्छ के छोटे से लेकर बड़े तक सब सदस्यों की अपनी चक्षु के सदृश रक्षा करता है ।
- गच्छाचार - प्रकीर्णक ( २२ )
सच्छंदिया सरूवा सालंकारा य सरस उल्लावा । वरकामिणी व्व गाहा गाहिज्जंती रसं देह ॥
For Private & Personal Use Only
गाथा
[ १०३
www.jainelibrary.org