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सुवि मग्गिज्जतो, कत्थ वि केलीइ नत्थि जह सारो । इंदिअविसर तहा, नत्थि सुहं सुछु वि गविट्ठ ॥
बहुत खोजने पर भी जैसे केले के पेड़ में कोई सार दिखाई नहीं देता, वैसे ही इन्द्रिय-विषयों में भी कोई सुख दिखाई नहीं देता ।
- भक्त-परिज्ञा ( १४/४ )
कामा वरित्तमोहो ।
काम की वृत्ति ही चरित्र - मूढ़ता है ।
तेलोक्काडविडहणो, कामग्गी विसयरुक्खपज्जलिओ |
जो कामाग्नि विषय रूपी वृक्षों का आश्रय लेकर प्रज्ज्वलित होती है, वह त्रैलोक्य रूपी वन को त्वरित जला देती है ।
- भगवती आराधना ( १११५ )
सक्को अग्गी निवारेउ, वारिषा जलओ विहु । दुन्निवारओ ॥
सव्वोदहिजलेणावि,
- आचाराङ्ग (१७८)
कामग्गी
अति जाज्वल्यमान रूप से जलती अग्नि को पानी से बुझाया जा सकता है, 'परन्तु काम रूपी अग्नि तो सर्व समुद्रों के पानी से भी शांत नहीं हो सकती । - इन्द्रियपराजयशतक ( ८ )
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सव्वगहाणं पभचो, कामग्गहो दुरप्पा, जेणऽभिभूअं
महागहो सव्वदोसपायट्टी ।
जगं सव्वं ॥
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सर्व दुष्ट ग्रहों का मूल कारण, सर्व दोषों का प्रकटकर्त्ता महाग्रह सदृश काम रूपी ग्रह ऐसा दुष्ट है कि जिसने सम्पूर्ण जगत् को पराभव कर दिया है ।
- इन्द्रियपराजयशतक ( २५ )
पजलिओबिसयअग्गी, चरित्तसारं
डहिज्ज कसिणंपि ।
प्रज्वलित कामाग्नि समस्त चारित्र रूपी धन को जला डालती है ।
- इन्द्रियपराजयशतक ( ८२ )
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