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विषय लोभिल्ला, पुरिसा कसाय वसगा।
करेन्ति एक्केकमविरोह ।। विषयों में लोभी और कषायों के वशीभूत पुरुष बिना वैर-विरोध के भी एक दूसरे का अनिष्ट करते हैं ।
-पउमचरियं ( ४/४६)
काव्य-कविता चिंतामंदरमंथाणमंथिए वित्थरमि अत्थाहे ।
उप्पज्जंति कईहिययसायरे कन्वरयणाई॥ चिन्तन रूपी पर्वत के मन्थन से मथित कवियों के विस्तृत एवं अगाध हृदय-सागर में काव्य-रत्न उत्पन्न होते हैं ।
__ -वज्जालग्ग ( ३/१) पाइयकवम्मि रसो जो जायइ तह य छेयभणिएहिं ।
उययस्स य वासियसीयलस्स तित्ति न वच्चामो ॥ प्राकृत-काव्य, विदग्ध-भणिति तथा सुवासित शीतल जल से जो आनन्द उत्पन्न होता है, उससे हमें पूर्णतया तृप्ति नहीं होती है।
-वजालग्ग ( ३/३) सद्दपलोट्ट दोसेहि वज्जियं सुललियं फुडं महुरं।
पुण्णेहि कह वि पावइ छंदे कन्वं कलत्तं च ।। उचित शब्दों से रचित, दोष-रहित, ललित, प्रसाद और माधुर्य गुणयुक्त एवं छन्दों में प्रणीत कविता किसी प्रकार पुण्य से ही प्राप्त होती है।
-वजालग्ग (३/६)
दुक्खं कीरइ कव्वं कव्वम्मि कए पउंजणा दुक्खं ।
संते पउंजमाणे सोयारा दुल्लहा हुंति ।। काव्य-रचना कष्ट से होती है, काव्य-रचना हो जाने पर उसे सुनाना कष्टप्रद होता है और जब सुनाया जाता है तब सुननेवाले भी कठिनाई से मिलते हैं।
-वजालग्ग ( १/१)
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