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लग्गो कोह दावानलो, डज्मइ गुण रयणाई।
उवसम जले जो ओलवे, न सहइ दुक्ख सहाई ॥ इस दुर्लभ मानव शरीर में लगा हुआ यह क्रोध रूपी दावानल गुण रूपी रत्नों को जला डालता है, जो उपशम रूपी जल में स्नान करता है वह क्रोधजनित सैकड़ों दुःखों को नहीं सहता है ।
-कामघट-कथानक (८१) कोह समो वेरियो नत्थि । क्रोध के समान वैरी नहीं है।
-वज्जालग्ग (३६/१०१)
क्षमा
सीलं वरं कुलाओ दालिदं भव्वयं च रोगाओ। विज्जा रज्जाउ वरं खमा वरं सुट्ठ वि तवाओ॥
कुल से शील श्रेष्ठ है, रोग से दारिद्रय श्रेष्ठ है, विद्या राज्य से श्रेष्ठ है और क्षमा बड़े से बड़े तप से भी श्रेष्ठ है ।
-वज्नालग्ग (८/५)
खन्तीए णं परीसहे जिणइ । क्षमा से परीषहों पर विजय प्राप्त की जाती है ।
- उत्तराध्ययन (२६/४६ ),
खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाण भूयजीवसत्तेसु ॥ मित्तीभावमुप्पाएइ मित्तीभावमुवगए यावि।
जीवे भावविसोहि काऊण निम्भए भवइ ॥ - क्षमा करने से मनुष्य मानसिक प्रसन्नता को प्राप्त होता है । मानसिक प्रसन्नता को प्राप्त हुआ व्यक्ति सब प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के साथ १०. ]
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