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ते आत्तओ पासइ सव्वलोए । तत्त्वदर्शी समग्र प्राणी-जगत् को अपने जैसा ही देखता है ।
__ -सूत्रकृताङ्ग (१/१२/१८) सव्वायरमुवउत्तो, अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ।। पूर्ण आदर और सावधानीपूर्वक आत्मोपम की भावना से सब जीवों पर दया करो।
__ -भक्तपरिशा (६३) हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे । आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुंथुआ-दोनों में आत्मा एक सदृश है ।
-भगवतीसूत्र (७/८)
आयओ बहिया पास। अपने समान ही बाहर में दूसरों को भी देख ।
-आचारांग ( १/३/३) जह मे इट्ठाणिठे सुहासुहे तह सव्वजीवाणं । जिस प्रकार इष्ट-अनिष्ट और सुख-दुःख मुझे होते हैं, उसी प्रकार ही सब जीवों को होते हैं।
-आचारांगचूर्णि ( १/१/६)
आपत्ति
पुरिसाण आवयच्चिय वहेइ कसवट्टए सतुल्लत्तं । एयाए निवडिओ जो, खलु कणयं व सो जच्चो॥
पुरुषों के लिए आपत्ति ही कसौटी की तुलना धारण करती है। इस आपत्ति रूपी कसौटी पर खरा उतरा हुआ व्यक्ति ही वास्तव में स्वर्ण की तरह खरा है, शुद्ध है।
--पाइअकहासंगहो (४०)
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