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नालस्सेण समं सुक्खं ।
आलस्य रहित होने के समान सुख नहीं है ।
- बृहत्कल्पभाष्य ( ३३८५ )
आसवदारेहिं सया, हिंसाईएहि कम्ममासवइ । जह नावाइ विणासो, छिद्देहि जलं उयहिमज्झे ।
आलसी
हिंसा आदि आस्रवद्वारों से सदा कर्मों का आस्रव होता रहता है, जैसा कि समुद्र में जल के आने से सछिद्र नौका डूब जाती है ।
- मरणसमाधि ( ६१८ )
मिच्छत्ताविरदी वि य, कसाय जोगा य आसवा होंति । मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग – ये आस्रव के हेतु हैं ।
- जयधवला ( १ / २ / ५४ )
गिलापज्जा, आहारस्सेव अन्तियं ।
यदि तुम रोगी हो तो, आहार का त्याग कर दो ।
आश्रव
अइनिद्धरेण विसया उइज्जति ।
अतिस्निग्ध आहार करने से विषय - कामना उद्दीप्त हो उठती है । - आवश्यक नियुक्ति ( १२६३ )
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आहार-विचार
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- आचारांग ( ८/८/३)
मियाहारा, अप्पाहारा
य जे नरा ।
हियाहारा न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥
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