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वह निश्चित रूप से उन सबका हिंसक होता है । किन्तु जो प्राणी नहीं मारे गए हैं, वह प्रमत्त उनका भी हिंसक ही है, क्योंकि वह अन्तर में सर्वतोभावेन हिंसा - वृत्ति के कारण सावद्य है, पापात्मा है ।
- ओधनियुक्ति (७५२-५३ )
जो होइ अप्पमत्तो, अहिंसओ हिंसओ इयरो । जो प्रमत्त है वह हिंसक है और जो अप्रमत्त है, वह अहिंसक है । - ओधनियुक्ति (७५४ )
दुक्खं खु णिरणुकंपा ।
किसी के प्रति निर्दयता का भाव रखना वास्तव में कष्टदायी है । - निशीथ - भाष्य ( ५६ / ३३ )
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जह मे इहाणिट्ठे सुहासुद्दे तह सव्वजीचाणं ।
जैसे इष्ट-अनिष्ट, सुख-दुःख मुझे होते हैं,
सव्वे अ चक्कजोही, सव्वे अ हया सचक् केहि |
आज तक जितने भी चक्रयोधी हुए हैं, वे सबके सब अपने ही चक्र से मारे गये ।
आत्मा का अशुभ परिणाम ही हिंसा है ।
वैसे ही सब जीवों को होते हैं । - आचारांग - चूर्णि ( १/१/६ )
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असुभो जो परिणामो सा हिंसा ।
- आवश्यक निर्युक्तिभाष्य (४३)
हिंसादो अविरमणं, वहपरिणामो य होइ हिंसा हु । हिंसा से विरत न होना और हिंसा का परिणाम रखना हिंसा ही है । -भगवती- -आराधना (८०१ )
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- विशेषावश्यकभाष्य ( १७६६ )
णाणी कम्मस्स खयत्थ- मुट्ठिदो णोदिट्ठो य हिंसाए । अददि असढं अहिंसत्थं, अप्पमत्तो अवधगो सो ॥
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