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अहमिक्को खलु सुद्धो, दंसणणाणमइओ सदाऽरूवी । ण वि अस्थि मज्झ किंचि वि, अण्णं परमाणुमित्तं पि ॥ मैं एक, शुद्ध, दर्शन - ज्ञानमय, नित्य और अरूपी हूँ । इसके अतिरिक्त अन्य परमाणु मात्र भी वस्तु मेरी नहीं है ।
- समयसार (३८)
उदीरेइ,
अप्पणा
चेव गरहइ,
अप्पणा चेव संवरइ ॥
आत्मा स्वयं अपने द्वारा ही कर्मों की उदीरणा करता है, स्वयं अपने द्वारा ही उनकी ग-आलोचना करता है और अपने द्वारा ही कर्मों के संवर - आश्रव का विरोध करता है ।
-भगवतीसूत्र (१/३)
की अर्थ-विशुद्धि है ।
अप्पणा चेव
आया
णे
अज्जो ! सामाइए, आया णे अजो ! सामाइयस्स अट्ठे ।
आर्य ! आत्मा ही सामायिक - समत्वभाव है और आत्मा ही सामायिक
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आत्मा की दृष्टि से हाथी एवं कुंथुआ दोनों में
हत्थि स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे ।
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आत्मा
-भगवतीसूत्र ( १/६ )
एवं अन्नय पाणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ ।
एक जीव की हिंसा करता हुआ आत्मा, तत्सम्बन्धी अनेक जीवों की हिंसा करता है ।
- भगवती सूत्र ( १ / ३४ )
आत्मा एक सदृश है । - भगवतीसूत्र (८८ /७)
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