Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- बाईसवाँ क्रियापद - क्रियाओं के परस्पर सहभाव की विचारणा
एवं पाणाइवायकिरिया वि।
भावार्थ - पारितापनिकी और कायिकी क्रिया के परस्पर सहभाव-कथन के समान प्राणातिपात क्रिया और कायिकी क्रिया का परस्पर सहभाव-कथन भी कहना चाहिए।
एवं आइल्लाओ परोप्परं णियमा तिण्णि कजंति। जस्स आइल्लाओ तिण्णि कजंति तस्स उवरिल्लाओ दोण्णि सिय कजंति, सिय णो कजति, जस्स उवरिल्लाओ दोण्णि कजति तस्स आइल्लाओ णियमा तिण्णि कजंति।
भावार्थ - इस प्रकार प्रारम्भ की तीन क्रियाओं का परस्पर सहभाव नियम से होता है। . जिसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ होती हैं, उसके आगे की दो क्रियाएं पारितापनिकी और प्राणातिपात क्रिया कदाचित् होती हैं, कदाचित् नहीं होती हैं परन्तु जिसके आगे की दो क्रियाएं होती हैं, उसके प्रारम्भ की तीन क्रियाएं कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी नियम से होती हैं। - जस्स णं भंते! जीवस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ तस्स पाणाइवाय किरिया कज्जइ, जस्स पाणाइवाय किरिया कज्जइ तस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ?
गोयमा! जस्स णं जीवस्स पारियावणिया किरिया कजइ तस्स पाणाइवाय किरिया सिय कज्जइ, सिय णो कज्जइ, जस्स पुण पाणाइवाय किरिया कजइ तस्स पारियावणिया किरिया णियमा कज्जइ। ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जिसके पारितापनिकी क्रिया होती है, क्या उसके प्राणातिपात क्रिया होती है ? तथा जिसके प्राणातिपात क्रिया होती है, क्या उसके पारितापनिकी क्रिया होती है?
उत्तर - हे गौतम! जिस जीव के पारितापनिकी क्रिया होती है, उसके प्राणातिपात क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं भी होती है, किन्तु जिस जीव के प्राणातिपात क्रिया होती है, उसके पारितापनिकी क्रिया नियम से होती है।
विवेचन - परिताप और प्राणातिपात का प्रथम की तीन क्रियाओं के सद्भाव में नियतपना नहीं है क्योंकि जब कोई घातक-शिकारी वध्य मृग आदि को धनुष खींच कर बाण आदि से बींध देता है तब उसका परिताप या मरण होता है या नहीं भी होता अतः दोनों का अनियतपना है अर्थात् पारितापनिकी और प्राणातिपात क्रिया एक जीव में कदाचित् एक साथ होती है कदाचित् नहीं भी होती। जब बाण आदि के प्रहार से जीव को प्राण रहित कर दिया जाता है तब प्राणातिपात क्रिया होती है, शेष समय में नहीं होती। किन्तु जिसके प्राणातिपात क्रिया होती है उसके नियम से पारितापनिकी क्रिया होती है क्योंकि परितापना के बिना प्राणघात संभव नहीं है। किन्तु प्राणातिपात और परिताप के सद्भाव में पूर्व
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