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तब क्या करना होगा? कुछ नहीं करना है। सजग हो जाने पर कि इच्छा दुख है, इच्छाएं गिर जाती हैं।' अब योग का अनुशासन'। तुम मार्ग पर प्रवेश कर चुके हो।
और यह तुम्हारी अपनी प्रगाढ़ता पर निर्भर करता है। यदि तुम्हारा यह बोध कि इच्छा दुख है इतना गहरा है कि यह समग्र है तुमने योग के मार्ग पर ही प्रवेश न किया होगा, तुम सिद्ध बन चुके होओगे। तुम साध्य तक पहुंच चुके होओगे।
लेकिन यह तुम्हारी प्रगाढ़ता पर निर्भर करेगा। यदि तुम्हारी प्रगाढता समग्र है, तब तुम लक्ष्य तक पहुंच चुके होओगे, तुम मार्ग पर प्रवेश कर चुके हो ओगे।
आज इतना ही।
प्रवचन 3 - मन की पाँच वृत्तियां
दिनांक 27 दिसम्बर, 19733;
वुडलैण्डस, बंबई।
योगसूत्र:
वृत्तयः पञ्चतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टाः।। 511
मन की वृत्तियां पाँच हैं। वे क्लेश का स्रोत भी हो सकती हैं और अक्लेश का भी।
प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः।। 6।।