________________ वह है लड़ना-लड़ना और दूसरे को नष्ट करना। बाहरी जगत में केवल यही तरीका है विजयी होने का। तुम इस बाहर के जगत में लाखों-लाखों वर्षों से रह रहे हो और तुम हमेशा लड़ते रहे हो। अगर तुम ठीक से नहीं लड़ते तो कई बार हार जाते हो। कई बार विजयी होते हो, अगर अच्छी तरह लड़ते हो। तो मजबूती से लड़ने का यह एक पका अंदरूनी कार्यक्रम ही बन चुका है। विजयी होने का मात्र एक रास्ता है और वह है, कठोर लड़ाई के दवारा। जब तुम भीतर छूते हो, तब तुम प्रोग्राम, वही व्यवस्था भीतर ले जाते हो क्योंकि तुम केवल इसी से परिचित होते हो। किंतु भीतर के संसार में बिलकुल विपरीत है दशा-लड़ो और तुम हार जाओगे, क्योंकि लड़ने को कोई है ही नहीं। अंतर्जगत में विजयी होने का तरीका है छोड़ देना। समर्पण है तरीका विजयी होने का। आंतरिक स्वभाव को बहने देना, लड़ना नहीं-यह तरीका है विजयी होने का। नदी को बहने देना, उसे धकेलना नहीं-यही है मार्ग जहां तक कि अंतर्जगत का संबंध है। लेकिन यह बिलकुल विपरीत है उसके, जिसके तुम अभ्यस्त हो। तुम केवल बाह्य जगत को जानते हो, अत: शुरू में लड़ाई होगी ही। जो कोई भीतर प्रवेश करता है वह वही शस्त्र ले जाता है-वही भाव, वही लड़ाई, वही मोर्चाबंदी। मेक्यावेली बाहर के संसार से संबंध रखता है; लाओस् पतंजलि और बुद्ध आंतरिक संसार से संबंध रखते हैं। और वे अलग चीजों को समझाते हैं। मेक्यावेली कहता है, आक्रमण सबसे अच्छा बचाव है। मत करो प्रतीक्षा। दूसरे के आक्रमण करने की प्रतीक्षा मत करो, क्योंकि फिर तो तुम पहले से ही हारने की ओर होते हो। तुम पहले ही हार चुके क्योंकि वह दूसरा शुरू कर चुका है। वह पहले ही आगे बढ़ गया है। तो शुरू कर देना हमेशा ज्यादा अच्छा रहता है। बचाव करने की प्रतीक्षा ही मत करो। हमेशा आक्रामक बनो। इससे पहले कि कोई दूसरा तुम पर आक्रमण करे, तुम. उस पर आक्रमण कर दो। और जितना संभव बन पड़े, उतनी ज्यादा चालाकी से लड़ी। जितना संभव हो सके उतनी बेईमानी के साथ। बेईमान बनो, चालाक बनो और आक्रमणशील बनी। धोखा दो, क्योंकि वही है एकमात्र तरीका। ये साधन हैं, जिनका सुझाव मेक्यावेली देता है। और मेक्यावेली एक ईमानदार आदमी है इसलिए वह ठीक वही सुझाता है, जो कुछ आवश्यक है। पर अगर तुम लाओत्स् पतंजलि या बुद्ध से पूछो, तो वे एक अलग प्रकार की विजय की बात कह रहे हैं- आंतरिक विजय की। वहां चालाकी काम न देगी, आक्रामकता न चलेगी, क्योंकि धोखा तुम किसे दे रहे हो? किसे तुम हराने वाले हो? तुम अकेले हो वहां। बाह्य संसार में तुम कभी अकेले नहीं होते हो। दूसरे वहां होते हैं, वे हैं शत्रु। लेकिन अंतर्जगत में तुम अकेले ही हो। वहां कोई दूसरा नहीं है। वहां न कोई शत्रु है न कोई मित्र। यह एक पूर्णतया नयी स्थिति है तुम्हारे लिए। तुम पुराने हथियार ले जाओगे, लेकिन वे पुराने हथियार तुम्हारी पराजय का कारण बन जायेंगे। तो जब तुम बाह्य जगत से अंतर्जगत में प्रवेश करने जाओ, तो सब पीछे छोड देना जो तुमने बाहर से सीखा है। उससे मदद नहीं मिलने वाली है।