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यही अर्थ है पतंजलि का जब वे कहते, हैं. 'ओम् को दोहराना और ओम् पर ध्यान करना सारी बाधाओं का विलीनीकरण और एक नवचेतना का जागरण लाता है।'
आज इतना ही।
प्रवचन 16 - मैं एक नूतन पथ का प्रारंभ हूं
दिनांक 6 जनवरी, 1975;
श्री रजनीश आश्रम पूना।
प्रश्नसार:
1-क्या आप किसी गुरुओं के गुरु द्वारा निर्देश ग्रहण करते हैं?
2-गुरुओं को किसी प्रधान गुरु दवारा निर्देश पाने की क्या आवश्यकता होती है?
3-हम अपनी स्तुइर्छत और अहंकारग्रस्त अवस्था में हमेशा गुरु के संपर्क में नहीं होते लेकिन क्या गुरु हमेशा हमारे संपर्क में होता है?
4-इच्छाओं का दमन किये बगैर उन्हें कैसे काटा जा सकता है?