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विधायक द्वैत के पार नहीं जा सकता। यह अच्छा है जहां तक बन पड़े, लेकिन इससे संबोधि की मांग करना तो बहुत ज्यादा हुआ। कभी अपेक्षा मत करना इसकी। नकारात्मक को गिरा देना होता है विधायक को पाने के लिए। विधायक को भी गिरा देना है अनंत को, पार के उस असीम को पाने के लिए। पहले गिरा देना निषेधात्मक को, फिर गिरा देना विधायक को। तब कुछ नहीं बचा रहता। वह 'कुछ नहीं' ही संबोधि है। तब कोई मन बचता नहीं।
__ मन या तो नकारात्मक होता है या स्वीकारात्मक, प्रसन्न होता है या अप्रसन्न, प्रेममय होता है या घृणापूर्ण, क्रोधी होता है या करुणामय; जकड़ा हुआ होता है रात और दिन से, जीवन और मृत्यु से। सारी चीजें संबंधित होती है मन से लेकिन फिर भी तुम नहीं हो संबंधित मन से। तुम उसके पास होते हो। मन के खोल में होते हो, लेकिन उसके पार होते हो।
संबोधि मन की नहीं होती। वह तुम्हारी होती है। यह शान कि 'मैं मन नहीं हूं, –संबोधि ही है। यदि तुम नकारात्मक बने रहते हो तो तुम मन के खाई वाले हिस्से में होते हो। यदि तुम विधायक होते हो, तो तुम मन के शिखर अंश को प्राप्त कर लेते हो। लेकिन इन दोनों में से कोई भी तुम्हारे अस्तित्व के मानसिक तल को पार नहीं कर सकता। दोनों को गिरा दो।
विधायक को गिराना कठिन होता है। नकारात्मक को गिराना सरल होता है क्योंकि नकारात्मक तुम्हें पीड़ा और कष्ट देता है। यह एक नरक होता है, इसलिए तुम गिरा सकते हो इसे। लेकिन जरा देखो तो दुर्भाग्य, तुमने उसे भी नहीं गिराया है। तुम नकारात्मक से भी चिपके रहते हो। तुम दुख से भी ऐसे चिपके रहते हो, जैसे कि वह कोई खजाना हो! तुम चिपकते हो तुम्हारी अप्रसन्नता से मात्र इसलिए क्योंकि यह एक पुरानी आदत हो गयी है। और तुम्हें कुछ न कुछ चाहिए चिपकने को। कोई चीज न पाकर, तुम चिपक जाते हो तुम्हारे नरक से ही। लेकिन ध्यान रहे. नकारात्मक को गिराना आसान है, चाहे यह कितना ही कठिन क्यों न जान पड़ता हो। विधायक को गिराने की तुलना में यह बहुत आसान है क्योंकि वह दुख है, पीड़ा है।
विधायक को गिराने का अर्थ है प्रसन्नता को गिरा देना; विधायक को गिराने का अर्थ हुआ कि उस सबको गिरा देना जो फूलों की भांति जान पड़ता है, वह सब जो सुंदर होता है। नकारात्मक असुंदर होता है; विधायक सुंदर। नकारात्मक है मृसुर विधायक है जीवन। लेकिन यदि तुम नकारात्मक को गिरा सकते हो, तो पहला कदम बढ़ाना। पहले दुख का अनुभव पाओ। कितना दुख दिया जाता है तुम्हें तुम्हारी नकारात्मकता द्वारा। जरा ध्यान दो कि कैसे दुख उभरता है इसमें से। मात्र देखो और अनुभव करो। वही अनुभूति कि नकारात्मक बात दुख निर्मित कर रही है एक अलगाव, एक गिराव बन जायेगी।
लेकिन मन के पास एक बहुत गहन चालाकी है। जब कभी तुम दुखी होते हो, तो यह हमेशा कहता है कि कोई दूसरा है जिम्मेदार। सावधान रहना, क्योंकि यदि इस चालाकी के शिकार हो जाते