Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 464
________________ ऐसा करते हो, तो तुम खतरे में पड़ोगे। वैसा संभव नहीं है। प्रेम एक छोटा तालाब है; वहां केवल दो व्यक्ति है। सारा संसार बहुत छोटा हो जाता है। दो के लिए एक दूसरे में प्रवेश करना संभव होता है। वहां भी तुम भयभीत होते हो। तालाब में भी तुम डरे हुए हो कि तुम कहीं खो न जाओ, डूब न जाओ। तो फिर समुद्र की तो बात ही क्या करनी? प्रेम प्रथम आधार-स्थल है। पहली तैयारी है ज्यादा बड़ी छलांग लगाने की। मैं तुम्हें सिखाता हूं प्रेम। और मैं कहता हूं तुमसे कि जो कुछ लगता हो दांव पर उसकी परवाह मत करना। उसे त्याग देना, चाहे वह कुछ भी हो। सम्मान, धन, परिवार, समाज, संस्कृति, कुछ भी लगता हो दांव पर, उसकी चिंता मत करना। जुआरी हो जाओ क्योंकि प्रेम की भांति और कुछ नहीं है। यदि तुम हर चीज गंवा दो तो भी तुम कुछ नहीं गंवाते यदि तुम प्रेम पा लेते हो तो। यदि तुम प्रेम को खो देते हो, तो तुम कुछ भी प्राप्त कर लो, तुम कुछ भी प्राप्त नहीं करते। इन दोनों बातों से सावधान रहना। समाज तुम्हारी मदद नहीं करेगा, वह प्रेम का विरोधी है। प्रेम एक समाज विरोधी शक्ति है। और समाज प्रेम का दमन करने का प्रयत्न करता है। फिर तुम्हारा उपयोग तरीकों से किया जा सकता है। उदाहरण के लिाग्र यदि तुम वास्तव में ही प्रेम में पड़ते हो, तो तुम्हें सिपाही नहीं बनाया जा सकता है, तुम्हें युद्ध पर नहीं भेजा जा सकता। वैसा असंभव है क्योंकि तुम्हें इन चीजों की परवाह ही नहीं रहती। तुम कहते, 'देश क्या? देश-भक्ति क्या? मूढ़ताएं हैं।' प्रेम इतना सुंदर फूल है कि जिसने इसे जान लिया, उसे देशभक्ति, राष्ट्रीयवाद, देश और झंडा, ये तमाम बातें मूढ़ताएं दिखने लगती हैं। वास्तविक बात तो तुम चूक ही गये हो। समाज प्रेम को किसी दूसरी दिशा में मोडने की कोशिश करता है। वास्तविक चीज का तो स्वाद ही नहीं लेने दिया जाता। तब तुम ललकते हो प्रेम के लिए, और तुम्हारा प्रेम किसी दिशा की ओर मोड़ा जा सकता है। वह देशभक्ति बन सकता है; तब तुम हो सकते हो शहीद। तुम छु हो, क्योंकि तुम व्यर्थ गंवा रहे हो स्वयं को। तुम जा सकते हो और मर सकते हो, क्योंकि तुम्हारा प्रेम दूसरे मार्ग पर ले जाया जा चुका है। यदि तुम प्रेम नहीं करते तो तुम्हारा प्रेम धन का प्रेम बन सकता है। तब तुम एक संचयकर्ता, एक जमाखोर बन जाते हो। तब तुम्हारा परिवार प्रसन्न रहता है क्योंकि तुम सुंदर ढंग से चल रहे हो। तुम तो सीधे आत्मघात ही कर रहे हो, और परिवार प्रसन्न रहता है क्योंकि तुम इतना ज्यादा धन इकट्ठा कर रहे हो। उन्होंने अपने जीवन गंवा दिये, अब वे तुम्हें विवश कर रहे हैं तुम्हारा जीवन गंवा देने के लिए। और वे ऐसा इतने प्रेममय ढंग से करते हैं कि तुम ना भी नहीं कर सकते। वे तुम्हें अपराधी अनुभव करवा देते हैं। यदि तुम धन इकट्ठा करते हो तो वे प्रसन्न होते हैं। लेकिन वह व्यक्ति धन कैसे जमा कर सकता है, जो कि प्रेम करता है? यह कठिन है। प्रेमी जमाखोर कभी नहीं होता। प्रेमी तो बांटता है, वितरित करता है, दिये चला जाता है। एक प्रेमी जमा कर ही नहीं सकता।

Loading...

Page Navigation
1 ... 462 463 464 465 466 467