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लेकिन जब प्रेम की आवश्यकता परिपूर्ण नहीं होती है, तब तुम हमेशा लड़ने को ही तैयार रहते हो। तुम जरा खयाल में लेना यह बात। अपने मन को ही देखने का प्रयत्न करना। यदि तुमने कुछ दिन अपनी सी से प्रेम नहीं किया होता, तो तुम निरंतर चिड़चिड़े रहते हो। यदि तुम प्रेम करते हो, तो तुम विश्रांति में होते हो। चिड़चिड़ाहट चली जाती है। और तुम इतना ठीक अनुभव करते हो कि तुम क्षमा कर सकते हो। प्रेमी हर बात के लिए क्षमा कर सकता है। प्रेम एक गहन आशीष बना है उसके लिए। तो वह सब क्षमा कर सकता है जो गलत है।
नहीं, नेता तुम्हें प्रेम नहीं करने देंगे क्योंकि फिर सिपाही निर्मित नहीं किये जा सकते। तब तुम कहां पाओगे युद्धखोरों को, विक्षिप्त लोगों को, पागल लोगों को जो कि विध्वंस ही करना चाहेंगे? प्रेम सृजन है। यदि प्रेम की आवश्यकता परिपूर्ण हो जाती है, तो तुम सृजन करना चाहोगे, विध्वंस नहीं। तब सारा राजनैतिक ढांचा ही ढह जायेगा। यदि तुम प्रेम करते हो, तो फिर सारा पारिवारिक ढांचा समग्र रूप से अलग होगा। यदि तुम प्रेम करते हो तो अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र अलग होंगे। वस्तुत: यदि प्रेम आने दिया जाये, तो सारा संसार समग्रतया अलग ही रूप ले लेगा। लेकिन उसे आने नहीं दिया जा सकता क्योंकि इस ढांचे के अपने न्यस्त स्वार्थ हैं। हर ढांचा स्वयं को आगे की ओर धकेलता है, और यदि तुम कुचले जाते हो तो वह परवाह नहीं करता।
सारी मानवता कुचली गयी है, और सभ्यता का रथ चलता चला जाता है। इसे समझो, इसे देखो, जागरूक हो जाओ इसके प्रति। और फिर प्रेम इतना सीधा-साफ होता है। कुछ और ज्यादा सीधा नहीं होता उससे। सारी सामाजिक आवश्यकताएं गिरा देना-सिर्फ तुम्हारी आंतरिक आवश्यकताओं का ध्यान रखो। यह कोई समाज के विरुद्ध हो जाना नहीं है। तुम तो बस तुम्हारे अपने जीवन को समृद्ध करने की कोशिश ही कर रहे हो। तुम यहां किसी दूसरे की अपेक्षाएं पूरी करने को नहीं हो। तुम यहां हो तुम्हारे अपने लिए, तुम्हारी अपनी परिपूर्णता के लिए।
प्रेम को प्रथम चीज लेना, मौलिक आधार और दूसरी चीजों की परवाह मत करना। पागल लोग तुम्हारे चारों ओर है। वे तुम्हें पागलपन की तरफ धकेलेंगे। समाज के विरुद्ध हो जाने की कोई जरूरत नहीं है। मात्र बहार आ जाना इसकी अपेक्षाओं से,बस इतना ही।
विद्रोही होने की, क्रांतिकारी होने की तुम्हें कोई जरूरत नही, क्योंकि वैसा करना फिर से उसी जगह आ जाना है। यदि तुम्हारा प्रेम परिपूर्ण नहीं होता है तो तुम क्रांतिकारी हो जाओगे, क्यों कि वह भी छिपे रूप में एकविध्वंस ही होता है। और फिर आती है वास्तविक समस्या-तुम्हारे अपने अहंकार को गिरा देने की। प्रेम चाहता है संपूर्ण समर्पण।
- इसे होने देना, क्योंकि कुछ और नहीं है जो तुम्हें घट सकता हो। यदि तुम इसे नहीं घटने देते हो तो तुम्हारा जीना व्यर्थ है। और यदि तुम इसे घटने देते हो, तो और बहुत-सी चीजे संभव हो