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हमेशा अपने भीतर लिये हो वे अंकराने लगते हैं। अब भूइम तैयार है और मौसम आ गया है। और वे फूल सुंदर होते हैं।
___ जब तुम किसी को छूकर तुरंत स्वस्थ कर सकते हो उसे, तो कठिन होता है उस प्रलोभन को रोक लेना। जब तुम लोगों का बहुत भला कर सकते हो, जब तुम महान सेवा कर सकते हो, तो इस बात के आकर्षण को रोक लेना बहुत कठिन होता है। और प्रलोभन तुरंत उठ खड़ा होता है। और तुम तर्क बिठा लेते हो और कहते हो कि यह तो मात्र लोगों की सेवा के लिए तुम ऐसा कर रहे हो। लेकिन भीतर झांक लेना-लोगों की सेवा करने से अहंकार उठ रहा होता है, और अब सबसे बड़ी बाधा खड़ी हो जायेगी।
भौतिकता कोई उतनी बड़ी बाधा नहीं है। यह तो ठीक नकारात्मक मन की भांति है। गिराने की दृष्टि से कोई बड़ी बाधा नहीं। यह दुख है। कठिन है विधायक को गिराना, आध्यात्यिकता को गिराना कठिन है। तुम शरीर को सरलता से गिरा सकते हो,लेकिन मन को गिराना वास्तविक समस्या है। लेकिन जब तक तुम भौतिक और आध्यात्मिक दोनों को ही नहीं गिरा देते, जब तक न तो एक रहता है न ही दूसरा, जब तक तुम दोनों के पार नहीं चले जाते, तुम संबोधि को उपलब्ध न हुए।
वह व्यक्ति जो संबोधि को उपलब्ध है, बहुत साधारण हो जाता है। उसके पास कुछ विशिष्ट नहीं है। और यही होती है विशिष्टता। वह इतना साधारण होता है कि सड़क पर तुम उसके पास से गुजर सकते हो। तुम आध्यात्मिक व्यक्ति के पास से यूं ही गुजर नहीं सकते। वह अपने चारों ओर एक लहराती तरंग ले आयेगा, वह तरंगायित ऊर्जा होगा। यदि वह सड़क पर तुम्हारे पास से गुजर जाये तो तुम एकदम स्थान कर लोगे उससे चली आयी बौछारों द्वारा। वह आकर्षित करता है चुंबक की भांति।
लेकिन तुम बुद्ध के पास से यूं ही गुजर सकते हो। यदि तुम नहीं जानते हो कि वे बुद्ध हैं, तो तुम नहीं ही जान पाओगे। लेकिन तुम रास्पूतिन से नहीं बच सकते। और रास्पूतिन कोई बुरा व्यक्ति नहीं-रास्पूतिन एक आध्यात्मिक व्यक्ति है। तुम रास्पूतिन से बचकर नहीं निकल सकते। जिस घड़ी तुम देखते हो उसे, तुम चुंबकीय आकर्षण में बंध जाते हो। तुम उसी के पीछे चलोगे सारी जिंदगी। ऐसा घटित हुआ जार को। एक बार उसने देखा रास्पूतिन को तो वह तो गुलाम हो गया उसका। उसके पास जबरदस्त शक्ति थी। वह हवा के तेज झोंके की भांति आता होगा; कठिन था उसके आकर्षण से बचना।
बुद्ध के प्रति आकर्षित होना कठिन था। बहत बार तुम उनसे किनारा काट कर निकल सकते हो। वे इतने सीधे-सरल और इतने साधारण थे! और यही तो होती है असाधारणता। क्योंकि अब नकारात्मक और विधायक दोनों खो जाते हैं। वह व्यक्ति अब विदयुत- क्षेत्र के अंतर्गत नहीं रहता। वह बस है। वह होता है चट्टान की भांति, वृक्ष की भांति। वह होता है आकाश की भांति। वह तुममें