Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 453
________________ कारण, उसके कारण नहीं। तुम्हारी श्रद्धा, तुम्हारी आस्था करेगी चमत्कार। क्योंकि उस घड़ी तुम हो जाते हो एक विधायक मन। __ एक स्त्री ने जीसस के चोगे को छू लिया था। वे चल रहे थे भीड़ में, और वह सी गरीब थी और इतनी बूढ़ी कि वह विश्वास न कर सकती थी कि जीसस उसे आशीष देंगे। इसलिए उसने सोचा, जब जीसस गुजरें वहां से, तो उनका चोगा छूने के लिए भीड़ में रहना ही अच्छा होगा। उसने सोचा, यह उनका चोगा है, और वह स्पर्श ही पर्याप्त है। और मैं इतनी गरीब हूं और इतनी बूढी, कौन ध्यान देगा मुझ पर, कौन परवाह करेगा? बहुत सारे लोग होंगे वहां, और जीसस उन्हीं की ओर ध्यान देंगे। इसलिए उसने बस छ भर लिया चोगे को। जीसस ने पीछे देखा, और वह बोली, 'मैं स्वस्थ हो गयी।' जीसस बोले, 'यह तुम्हारी आस्था के कारण हुआ है। मैंने कुछ नहीं किया है, तुमने यह स्वयं ही किया है।' बहुत सारे चमत्कार घट सकते हैं, लेकिन जो संबोधि को उपलब्ध होता है वह व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता है। मन ही है कर्ता-सब चीजों का कर्ता। जब मन नहीं होता तो घटनाएं होती हैं लेकिन कोई क्रिया नहीं होती। संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति,वस्तुत: अब होता ही नहीं है। वह अनस्तित्व के रूप में जीवित होता है-शून्यता की भांति। वह एक खाली गर्भगृह होता है। तुम उसमें प्रवेश कर सकते हो, लेकिन तुम उससे मिलोगे नहीं। वह ध्रुवताओं के पार जा चुका होता है, वह बड़ा विराट अपरिसीम है। तुम खो जाओगे उसमें, पर उसे तुम पा नहीं सकते। आध्यात्मिक शक्ति से भरा व्यक्ति अभी भी संसार में है। वह ध्रुवीय तौर पर तुम्हारे विपरीत होता है। तुम निस्सहाय अनुभव करते हो; वह शक्तिशाली अनुभव करता है। तुम अस्वस्थ अनुभव करते हो, वह तुम्हें स्वस्थ कर सकता है। ऐसा होगा ही। तुम निन्यानबे प्रतिशत निषेधात्मक हो; वह निन्यानबे प्रतिशत विधायक होता है। वह मिलन ही होता है असमर्थता और सामर्थ्य के बीच। और तुम बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाओगे ऐसे आदमी से। और यही बात एक खतरा बन जाती है उसके लिए। जितने ज्यादा तम प्रभावित होते हो उसके दवारा, उतना ज्यादा अहंकार मजबत होता है। नकारात्मक व्यक्ति के साथ, अहंकार बहुत ज्यादा नहीं बना रह सकता क्योंकि अहंकार को चाहिए होती है विधायक शक्ति। इसीलिए पापियों में तुम बहुत विनम्र व्यक्ति पा सकते हो, लेकिन साधु-महात्माओं में कभी नहीं पा सकते। साधु-महात्मा तो हमेशा ही बड़े अहंकारी होते है। वे 'कुछ' होते हैंशक्तिशाली, चुइंनदा, सर्वोत्कृष्ट, ईश्वर के संदेशवाहक, पैगम्बर। वे कुछ खास होते है। पापी तो विनम्र होता है-स्वयं से ही भयभीत। वह सावधानीपूर्वक बढ़ता है जैसे वह जानता हो कि वह क्या है। ऐसा बहुत बार हुआ कि पापी ने सीधी छलांग ले ली और संबोधि को उपलब्ध हो गया, लेकिन

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