Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ मैं यहां हूं। यदि तुम भी यहां हो तो कुछ घटता है। लेकिन यही है समस्पा-शायद ऐसा लगता हो कि तुम यहा हो और तुम यहां नहीं होते हो। तब कुछ नहीं घटता। मैं यहां हूं। यदि तुम भी होते हो यहां, तो चीजें अपने से घटती हैं। बस ऐसा ही होता है, मैं नहीं कर रहा होता कुछ। यदि इससे भिन्न कछ होता, तो मैं तुमसे थक गया होता, लेकिन मैं कभी नहीं थकता क्योंकि मै कुछ नहीं कर रहा। तम मझे नहीं थका सकते; मैं ऊबा हआ नहीं हैं। यदि इससे अन्यथा कुछ होता तो मैं थक गया होता। तुम स्वयं से भी ऊबे हुए हो-तुममें से बहुत ऊबे हुए है। दी संप्रदाय में कि एक रबाई ने चले जाने की धमकी दे दी। पवित्र दिवस करीब आ रहे थे और ट्रस्टी लोग चिंतित थे इस बारे में कि क्या करना चाहिए। अभी यह कठिन था, तत्काल ही किसी रबाई को खोज लेना, नये रबाई को खोजना। और वह पुराना वाला तो अपनी बात पर अटल बना हुआ था। उन्होंने उसे राजी कराने का प्रयत्न किया। उन्होंने तीन ट्रस्टियों का एक प्रतिनिधि मंडल भेजा, और उन्होंने ट्रस्टियों से कहा कि उससे कहें, 'यदि वह ज्यादा वेतन चाहता है, तो स्वीकार कर लेना। या उससे कहना कि वह कम से कम कुछ सप्ताह ही रुक जाये। फिर वह जा सकता है। फिर हम किसी और को ढूंढ पायेंगे।' तो गये वे, और उन्होंने रुकने के लिए राजी किया और उन्होंने हर ढंग से कोशिश की। वे कहते रहे, 'हम प्रेम करते हैं आपसे और सम्मान करते हैं आपका। क्यों छोड़कर जा रहे है आप?' पर रबाई बोला, 'यदि आपकी तरह के पांच व्यक्ति यहां होते, तो मैं यहीं रहता।' उन्होंने बड़ा सम्मानित अनुभव किया क्योंकि उसने कह दिया था, 'यदि आपकी तरह के पांच व्यक्ति यहीं होते, तो मैं यहीं रहता।' उन्होंने बहुत अच्छा अनुभव किया और वे बोले, 'तो ऐसा कोई बहुत मुश्किल तो नहीं होगा। हम तीन तो यहां हैं ही। दो और खोजे जा सकते हैं।' वह रबाई बोला, 'यह मुश्किल नहीं है; यही तो अड़चन है। आपकी तरह के दो सौ व्यक्ति यहां हैं, और यह बहुत ज्यादा है।' तुम स्वयं से ही ऊबे हुए हो। जरा देख लेना दर्पण में-तुम ऊबे हुए हो अपने चेहरे से। और तुम कितने सारे हो यहां! फिर मुझे तो भयंकर रूप से ऊब जाना चाहिए। और तुम रोज मेरे पास वही-वही समस्याएं लिये चले आते हो। लेकिन मैं कभी नहीं ऊबता क्योंकि मैं कार्य नहीं कर रहा है। यह कोई कृत्य जरा भी नहीं है। तुम इसे प्रेम कह सकते हो, लेकिन कार्य नहीं। प्रेम कभी नहीं ऊबता है। हजार बार तुम मेरे पास फिर-फिर वही समस्याएं ला सकते हो। बहुत समस्याएं होती ही नहीं हैं। मैं हजारों लोगों को देखता रहा है। वही समस्याएं बार-बार दोहराते रहते हैं। तुम्हारी समस्याएं सप्ताह के सात दिनों की भांति ही हैं-उससे कुछ ज्यादा नहीं। फिर सोमवार आता है, फिर से मंगलवार आता है-ऐसा ही चलता चला जाता। लेकिन मैं जरा भी ऊबा हुआ नहीं हूं क्योंकि मैं कार्य नहीं कर रहा हूं। यदि कोई कार्य कर रहा हो, तो निस्संदेह यह बहुत कठिन होता है। तो इसलिए मैं कर सकता हूं काम-क्योंकि मैं कुछ कर नहीं रहा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467