Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 451
________________ प्राप्त व्यक्ति एक जीवंत बुद्ध- कृपया बतायें कि इन दोनों के बीच विकास की दृष्टि से क्या अंतर होता है? यही है भेद-वह व्यक्ति जो बिलकुल विधायक बन चुका होता है आध्यात्मिक उपलब्धि का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति जो नितांत नकारात्मक हो गया है सबसे अधिक अवनत व्यक्ति होता है। जब मैं कहता हूं नकारात्मक, मेरा मतलब होता है निन्यानबे प्रतिशत नकारात्मक, क्योंकि परम नकारात्मकता संभव नहीं होती । न ही संभव होती है परम विधायकता। दूसरे की जरूरत रहती है। परिमाण बदल सकता है, मात्राएं तो भेद रखती ही हैं। जो व्यक्ति निन्यानबे प्रतिशत निषेधात्मक हो और एक प्रतिशत विधायक, वह सर्वाधिक अवनत व्यक्ति होता है, जिसे ईसाई कहते हैं पापी। वह केवल एक प्रतिशत ही विधायक होता है। उसकी भी जरूरत होती है उसकी निन्यानबे प्रतिशत नकारात्मकता को मदद देने के लिए ही। वह हर चीज में नकारात्मक होता है। जो कुछ भी तुम हो, केवल नकार में ही होती है प्रतिक्रिया अस्तित्व कुछ भी पूछे, उसका उत्तर केवल 'नहीं' ही होता है । वह वैसा ही नास्तिक होता है जो किसी चीज के प्रति हां नहीं कह सकता; जो हां कहने में अक्षम चुका है; जो आस्था नहीं रख सकता। यह आदमी नारकीय दुख उठाता है। और क्योंकि वह हर चीज के प्रति 'नहीं' कहता है, वह एक नकार ही बन जाता है। एक मुंह फाडती नकार-क्रोध की, हिंसा की, दमन की, उदासी की - सब एक साथ। वह बन जाता है एक साकार नरक। ऐसा व्यक्ति खोजना कठिन होता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति होना कठिन है। बहुत कठिन है निन्यानबे प्रतिशत नरक में रहना। लेकिन तुम्हें समझाने भर को ही मैं बता रहा हूं यह यह एक गणित के हिसाब से संभावना है। व्यक्ति ऐसा बन सकता है यदि वह ऐसी कोशिश करता है तो तुम ऐसा व्यक्ति कहीं नहीं पाओगे। हिटलर भी इतना विध्वंसक नहीं है। सारी ऊर्जा ध्वंसात्मक बन जाती है केवल दूसरों की ही नहीं, बल्कि स्वयं की भी संपूर्ण अभिवृति ही आत्मघाती होती है। जब एक व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह क्या कर रहा होता है? वह अपनी मृत्यु द्वारा जीवन को नकार रहा है। वह 'नहीं' कह रहा है परमात्मा के प्रति वह कह रहा है, 'तुम निर्मित नहीं कर सकते मुझे। मैं नष्ट कर दूंगा स्वयं को ' सार्त्र इस युग के महान विचारकों में से स्व-उसने कहा था कि आत्महत्या एकमात्र स्वतंत्रता है–ईश्वर से स्वतंत्रता। ईश्वर से स्वतंत्रता किसलिए? क्योंकि तब कोई स्वतंत्रता नहीं होती। तुम्हारे पास कोई स्वतंत्रता नहीं होती तुम्हारा अपना निर्माण करने की जब भी तुम होते हो, तुम स्वयं को पहले से ही निर्मित हुआ पाते हो। जन्म तुम नहीं ले सकते। वह तुम्हारी स्वतंत्रता नहीं है। सार्त्र कहता है, फिर भी मृत्यु तुम ला ही सकते हो वह तो तुम्हारी स्वतंत्रता है। तब तुम निश्रित रूप से

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