Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 457
________________ तो ध्यान रखना, तुम्हारा मन आध्यात्मिक होने की कोशिश करेगा। तुम्हारे मन में ललक रहती है और ज्यादा शक्तिशाली होने की।'ना कुछ' लोगों के इस संसार में कुछ हो जाने की ललक इस बात के प्रति सचेत रहना। यदि इसके द्वारा बहुत लाभ भी पहुंचा सकते हो, तो भी यह खतरनाक है। लाभ होता है केवल सतह पर ही। गहरे में तो तुम मार रहे होते हो स्वयं को। और ही वह बात खो जायेगी, और तम फिर से जा पड़ोगे नकारात्मक में ही। वह एक खास ऊर्जा है। तुम उसे खो सकते हो। तुम उपयोग कर सकते हो उसका, फिर वह चली जाती है। हिदुओं के पास अत्यंत वैज्ञानिक वर्गीकरण है; अन्यत्र कहीं भी वैसा वर्गीकरण नहीं है। पश्चिम में वे नरक और स्वर्ग की शब्दावली में सोचते हैं मात्र दो चीजें ही। हिंदु सोचते हैं तीन वर्गों की बात-नरक, स्वर्ग और मोक्ष। तीसरे शब्द को पश्चिमी भाषाओं में अनुवादित करना कठिन है क्योंकि कोई और वर्ग अस्तित्व नहीं रखता। तुम कहते हो उसे 'लिबरेशन', पर यह वह भी नहीं है। यह एक भाव देती है उसकी एक सुगंध मात्र देती है लेकिन तो भी यह ठीक-ठीक वही नहीं है। नरक और स्वर्ग होते है वहां। तीसरी अवस्था वहां है ही नहीं। नकाराअक मन अपनी पराकाष्ठा में एक नरक ही है; स्वर्ग यानी परम विधायक मन। लेकिन पार की बात कहां है? भारत में वे कहते हैं कि यदि तुम अध्याअवादी हो, तो जब तुम मरोगे तो तुम स्वर्ग में उत्पन्न होओगे। तुम लाखों वर्ष वहां सुखपूर्वक रहोगे, परम सुख भोगोगे हर चीज का। लेकिन फिर तुम्हें वापस आना पड़ेगा फिर से इसी धरती पर। ऊर्जा खो जाने पर तम्हें वापस आना ही पड़ेगा। तमने एक विशिष्ट ऊर्जा अर्जित की थी,फिर तुमने उसका उपयोग कर लिया। तुम फिर से आ पड़ोगे उसी परिस्थिति में। __ इसीलिए भारतीय कहते हैं कि मत खोजना स्वर्ग को। यदि लाखों वर्ष तक भी तुम सुखी रहो, तो वह सुख सदा के लिए टिकने वाला नहीं होता। तुम गंवा दोगे उसे; तुम वापस कुक आओगे। वह प्रयास योग्य नहीं है। ये वही हैं जिन्हें हिदू 'देवता'कहते हैं। वे जो स्वर्ग में रहते हैं, वे लोग जो स्वर्ग में निवास करते है। वे मुक्त नहीं हैं, संबोधि को उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन वे विधायक है। वे पहुंच चुके हैं अपनी विधायक ऊर्जा के शिखर तक, मनस-ऊर्जा के शिखर तक। वे उड़ान भर सकते हैं आकाश में; वे आकाश के एक स्थल से दूसरे स्थल तक तुरंत जा सकते हैं समय के किसी अंतराल के बिना ही। जिस क्षण वे किसी बात की आकांक्षा करते है; तुरंत वह पूरी हो जाती है समय के किसी अंतराल के बिना ही। यहां तुम करते हो आकांक्षा और वहां अगले क्षण वह पूर्ण हो जाती है। उनके पास सुंदर, नित्य युवा देह होती है। वे कभी वृद्ध नहीं होते। उनके शरीर स्वर्णमय होते हैं। वे स्वर्णनगरियों में युवा स्रियों के साथ रहते हैं; मदिरा, स्त्रियां और नृत्य। और वे निरंतर सुखी रहते हैं। वस्तुत: केवल एक ही मुसीबत होती है वहां, और वह है ऊब। वे ऊब जाते हैं। केवल वही होती है नकारात्मक बात। एक प्रतिशत नकारात्मक और निन्यानबे प्रतिशत सुख-चैन। वे बिलकुल ऊब जाते

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