Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 445
________________ हो तो फिर नकारात्मक को कभी नहीं गिराया जा सकता। इसी भांति ही नकारात्मक स्वयं को छिपा रहा होता है। तुम क्रोधित होते हो तो मन कहता है कि किसी ने तुम्हारा अपमान कर दिया इसलिए क्रोध में हो। यह बात सही नहीं है। किसी ने किया होगा तुम्हारा अपमान लेकिन वह तो मात्र बहाना हुआ। तुम पहले से ही क्रोधित होने की प्रतीक्षा में थे। क्रोध तुम्हारे भीतर संचित हो रहा था। वरना, कोई तुम्हारा अपमान कर देगा और क्रोध नहीं आयेगा। अपमान इसका एक स्पष्ट कारण दिख सकता है, लेकिन वास्तव में यही नहीं होता कारण। तुम भीतर उबल रहे होते हो। वस्तुत: वह व्यक्ति जो तुम्हारा अपमान करता है, तुम्हें मदद पहंचाता है। वह तुम्हें मदद पहुंचाता है तुम्हारे भीतर की अशांति को बाहर ले आने में और उसे समाप्त करने में। तुम इतनी बुरी अवस्था में हो कि अपमान भी मदद पहुंचाता है। शत्र तुम्हारी मदद करता है क्योंकि वह सारी नकारात्मकता को बाहर ले आने में तुम्हें मदद देता है। कम से कम तुम कुछ समय के लिए तो निबोंझ हो ही जाते हो। मन के पास सदा से यह चालाकी है-तुम्हारी चेतना को दूसरे की ओर मोड़ देना। जैसे ही कुछ गलत होता है और तुम खोजना शुरू कर देते हो यह जानने को कि किसने किया है ऐसा। तो उसी खोजने में ही चूक जाते हो, और वास्तविक अपराधी कहीं पीछे छुपा हुआ होता है। __ इसे एक परम नियम बना लेना कि जब कभी कुछ गलत हो तो तुरंत अपनी आंखें बंद कर लेना और वास्तविक अपराधी की खोज करना। और तुम उसे देख पाओगे क्योंकि वह एक सत्य है। वह एक वास्तविकता है। यह सच है कि तुम क्रोध संचित कर लेते हो और इसीलिए तुम क्रोधित हो जाते हो। यह सत्य है कि तुम घृणा संचित करते हो और इसीलिए तुम घृणा अनुभव करते हो। कोई दूसरा नहीं है वास्तविक कारण। संस्कृत में दो शब्द है। एक शब्द है कारण-वास्तविक कारण, और दसरा शब्द है निमित्त-अवास्तविक कारण। और यह निमित्त, अवास्तविक कारण जो कारण की भांति जान पड़ता है लेकिन फिर भी कारण नहीं होता है, तुम्हें ठग लेता है। यह तुम्हें ठग रहा होता है बहुत-बहुत जन्मों से। जब कभी तुम अनुभव करो कि कुछ दुखदायक घट रहा है तो तुरंत अपनी आंखें बंद कर लेना और भीतर जा पहुंचना,क्योंकि वही होती है असली घड़ी अपराधी को रंगे हाथों पकड़ने की। अन्यथा तुम नहीं पकड़ पाओगे उसे। जब क्रोध तिरोहित हो जाता है, तुम अपनी आंखें बंद करो। तुम कुछ नहीं पाओगे वहां। किसी अत्यंत क्षुब्ध स्थिति में, यह बात मत चूकना। इसे ध्यान बना लेना। __ और हो सकता है तुम अनुभव करने लगो कि नकारात्मक को गिराने के लिए किसी विधि की कोई जरूरत नहीं है। नकारात्मक इतना असुंदर होता है और एक ऐसा रोग होता है कि आश्चर्य तो यह है कि कैसे तुम वहन करते हो इसे। इसे गिराना तो कुछ भी नहीं है; इसे वहन करना आश्चर्यजनक है। कैसे इसे तुम वहन किये रहते हो, यही बात पहेली बनी रही है सारे बुद्ध-पुरुषों के

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