Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 447
________________ जब कोई सफलता पा रहा होता है, ज्यादा और ज्यादा ऊंचे पहुंच रहा होता है सीढ़ी पर, उसे गिरा देने की बात कहने की कोशिश करना। वही तो है उसका उद्देश्य, उसकी दृष्टि में। और यदि वह सोचता भी है इसे गिराने की, तो वह जानता है वह जा पड़ेगा दुख में, क्योंकि विधायक से हटकर कहां बढ़ेगा वह? तुम जानते हो केवल दो संभावनाएं-विधायक या नकारात्मक। यदि तुम गिराते हो विधायक को, तो तुम सरकते हो नकारात्मक की ओर। इसीलिए तो नकारात्मक को पहले गिरा देना है। नकारात्मक से कहीं और सरकने को तुम्हारे पास और कुछ नहीं रहता। अन्यथा यदि तुम सकारात्मक को गिरा देते हो, तो तुरंत नकारात्मक प्रवेश कर जाता है। यदि तुम प्रसन्न नहीं होते तो क्या होओगे तुम? अप्रसन्न। यदि तुम मौन नहीं होते हो, तो क्या होओगे तुम? बातूनी। इसलिए पहले तो नकारात्मक को गिरा देना जिससे एक विकल्प, एक दवार तो बंद हो जाये। तुम उस रास्ते पर अब गतिमान हो नहीं सकते। अन्यथा ऊर्जा की वही बंधी-बंधायी गति होती हैविधायक से नकारात्मक की ओर, नकारात्मक से विधायक की ओर। यदि नकारात्मक का अस्तित्व होता है, तो हर संभावना रहती है कि जिस क्षण तुम विधायक को गिराओ, तुम नकारात्मक हो जाओगे। जब तुम प्रसन्न नहीं होते, तब तुम होओगे अप्रसन्न। तुम नहीं जानते कि एक तीसरी संभावना भी होती है। वह तीसरी संभावना खुलती है केवल तब जब नकारात्मक तो गिराया जा चुका होता है और जब तुमने विधायक भी गिरा दिया होता है। कुछ देर को वह ठहराव होगा। ऊर्जा कहीं नहीं जा सकती; वह नहीं जानती कि कहां प्रवेश करना है। नकारात्मक द्वार बंद हो चुका, विधायक बंद हो चुका है। क्षण भर के लिए तुम मध्य में होओगे और वह क्षण जान पड़ेगा शाश्वत की भांति। वह जान पडेगा बहुत-बहुत लंबा, अनंत। क्षण भर को तुम ठीक मध्य में होओगे, न जानते हुए कि क्या करना है, कहां जाना है। यह क्षण विक्षिप्तता की भांति लगेगा। यदि तम न विधायक हो और न ही नकारात्मक, तो क्या हो तुम? क्या है तुम्हारी पहचान? तुम्हारा व्यक्तित्व, नाम और रूप गिरा जाता है विधायक और नकारात्मक के साथ ही। अकस्मात तुम ऐसे कोई नहीं होते जिसे कि तम पहचान सको मात्र एक ऊर्जा-घटना होते हो। और तुम नहीं कह सकते कैसा अनुभव कर रहे होते हो तुम। कोई अनुभूति होती नहीं। यदि तुम इसे बरदाश्त कर सको, यदि तुम सह सकते हो इस क्षण को, तो यही सबसे बड़ा त्याग है, सबसे बड़ी तपश्चर्या है। और संपूर्ण योग तुम्हें तैयार करता है इसी घड़ी के लिए। अन्यथा प्रवृत्ति होगी कहीं न कहीं जाने की, लेकिन इस शून्य में नहीं रहने की। वह होगी विधायक या नकारात्मक होने को अनुभव करने की, पर इस शून्य में होने की नहीं। तुम कुछ नहीं हो। यह ऐसा है जैसे कि तुम तिरोहित हो रहे हो। एक विराट शून्य खुल गया है, और तुम उसमें गिरते जा रहे हो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467