Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 437
________________ हो, जितना ज्यादा तुमसे हो सकता हो तो क्या घटता है भीतर ? सारा शरीर उस सबको फेंक देता है जो-जो विषाक्त होता है रक्त में वायु बाहर हो गयी और शरीर के पास एक अंतराल है। उस अंतराल में ही सारे विष बाहर फेंक दिये जाते हैं। अक्सर वे हृदय तक आ पहुंचते हैं; वे वहां संचित हो जाते हैं - नाइट्रोजन, कार्बन डाइ आक्साइड, ये जहरीली गैसें, ये सब वहां एक साथ एकत्रित हो जाती हैं। अक्सर तुम उन्हें अवसर नहीं देते वहां एक साथ एकत्रित होने का तुम सांस बाहर भीतर किये जाते हो बिना किसी अंतराल के या ठहराव के ठहराव के साथ एक अंतराल निर्मित हो जाता है, एक शून्यता निर्मित हो जाती है। उसी शून्यता में, हर चीज भीतर प्रवाहित हो जाती है और उसे भर देती है। फिर तुम गहरी श्वास भीतर लेते हो और फिर तुम रोके रहते हो वे सारी विषैली गैसें श्वास के साथ घुलमिल जाती है; तब तुम फिर सांस बाहर छोड़ते और उन्हें बाहर निकाल देते। फिर तुम विराम देते। विषाक्त चीजों को एकत्र होने दो। यह एक तरीका है चीजों को बाहर फेंक देने का । मन और श्वसन, दोनों बहुत ज्यादा संबंधित हैं। उन्हें होना होता है क्योंकि श्वास जीवन है। एक आदमी बिना मन के हो सकता है, लेकिन वह श्वास लिये बिना नहीं रह सकता। श्वास- क्रिया ज्यादा गहरी है मन से तुम्हारे मस्तिष्क की पूरी शल्य क्रिया हो सकती है; तुम जीवित रहोगे अगर तुम श्वास ले सको तो। यदि श्वसन बना रहे तो तुम जीवित रहोगे। मस्तिष्क पूरी तरह बाहर निकाला जा सकता है। तुम निष्क्रिय जीवन लिये पड़े रहोगे, तो भी तुम जीवित रहोगे। तुम आंखें नहीं खोल पाओगे या बात नहीं कर पाओगे या कुछ नहीं कर पाओगे, लेकिन बिस्तर पर पड़े हुए जीवित रह सकते हो और जीवन बिता सकते हो वर्षोंतक। लेकिन मन जीवित नहीं रह सकता। यदि श्वास थम जाती है तो मन तिरोहित हो जाता है। योग ने खोज लिया था यह आधारभूत तथ्य कि श्वास क्रिया ज्यादा गहरी होती है विचार से यदि तुम श्वास परिवर्तित करते हो, तो तुम सोचना परिवर्तित कर देते हो और एक बार तुम पा लेते हो कुंजी कि श्वास के पास है कुंजी तो फिर तुम जो दशा चाहो बना सकते हो - यह तुम पर निर्भर है। जैसे तुम श्वास लेते हो, यह उस ढंग पर निर्भर है। बस एक काम करना - सात दिन तक तुम केवल विवरण लिख लेना उन विभिन्न प्रकार की श्वास-क्रियाओं के जो अलग-अलग मनोदशाओं के साथ घटती हैं। तुम क्रोधित होते हो एक नोटबुक लेना और तुम्हारी श्वास को गिनना कितनी तुम भीतर भरते हो और कितनी बाहर छोड़ते हो। यदि पांच की गिनती तक श्वार्से तुम भीतर खींचते हो और तीन गिनती तक बाहर छोड़ते हो, तो इसे लिख लेना । कई बार तुम बहुत सुंदर अनुभव करते हो, अतः लिख लेना कि सांस लेने और छोड़ने का अनुपात कितना है, क्या वहां कोई विराम है। लिख लेना इसे और सात दिन तक एक डायरी ही बना लेना अपनी स्वयं की श्वास- क्रिया अनुभव करने के लिए कि कैसे यह तुम्हारी मनोदशाओं के साथ संबंधित होती है। तब तुम इसे छांट सकते हो। तब जब कभी तुम कोई मनोदशा गिरा देना चाहते

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