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इसीलिए तुम लाल हो जाते हो जब तुम क्रोध में होते हो। निश्चित रसायन पहुंच चुके होते हैं रक्त में। और ज्वरित उत्तेजना से भर जाते हो। तुम्हारा तापमान बढ़ जाता है। शरीर तैयार होता है संघर्ष करने को या पलायन करने को। शरीर आपातस्थिति में होता है। श्वास की चोट पड़ने से यह परिवर्तन घटता है।
श्वास को मत बदलना। बस बनाये रखना श्वास की उसी लय को जो मौन में होती है। श्वास-क्रिया को तो मौन ढांचे का अनुसरण भर करना है; तब क्रोधित होना असंभव हो जायेगा। जब तुम बहुत आवेश अनुभव कर रहे होते हो, कामातुर होते हो,कामवासना पकड़ लेती है तब अपने श्वसन में शांत होने का प्रयत्न करना और तुम अनुभव करोगे कि कामवासना तिरोहित हो गयी है।
पतंजलि एक विधि का सुझाव देते हैं- 'बारी-बारी से श्वास बाहर निकालने और रोकने दवारा भी मन शांत होता है।' जब कभी तुम अनुभव करते हो कि मन शांत नहीं, वह तनावपूर्ण है, चिंतित है, शोर से भरा है, निरंतर सपने देख रहा है, तो एक काम करना-पहले गहरी सांस छोड़ना। सदा प्रारंभ करना सांस छोड़ने द्वारा ही। जितना हो सके उतनी गहराई से सांस छोड़ना;वायु बाहर फेंक देना। वाय बाहर फेंकने के साथ ही मनोदशा बाहर फेंकी जायेगी, क्योंकि श्वसन ही सब कुछ है।
फिर जितना संभव हो, श्वास को बाहर निकाल देना। पेट को भीतर खींचना और उसी तरह बने रहना कुछ सेकेंड के लिए,सांस मत लेना। वायु को बाहर होने देना, और कुछ सेकेंड के लिए सांस मत लेना। फिर शरीर को सांस लेने देना। गहराई से सांस भीतर लेना जितना तुमसे हो सके। फिर दोबारा ठहर जाना कुछ सेकेंड के लिए। यह अंतराल उतना ही होना चाहिए जितना बाहर श्वास छोड़ने के बाद तुम बनाये रखते हो। यदि तुम श्वास छोड़ने को तीन सेकेंड के लिए बनाये रहते हो, तो को भीतर भी तीन सेकेंड तक बनाये रखना। इसे बाहर फेंको और रुके रहो तीन सेकेंड तक। इसे भीतर लो और रुके रहो तीन सेकेंड तक। लेकिन इसे पूर्णतया बाहर फेंक देना होता है। समग्रता से सांस छोड़ो और समग्रता से सांस लो, और एक लय बना लो। सांस खींचने के बाद रुके रहना, सांस छोड़ने के बाद रुके रहना। तुरंत तुम अनुभव करोगे कि एक परिवर्तन तुम्हारे संपूर्ण अस्तित्व में उतर रहा है। वह मनोदशा जा चुकी होगी। एक नयी आबोहवा तुममें प्रवेश कर चुकी होगी।
__ क्या घटता है? क्यों ऐसा होता है? बहुत-से कारण हैं-एक, जब तुम यह लय निर्मित करने लगते हो, तब तुम्हारा मन पूर्णतया उस ओर मुड़ा हुआ होता है। तुम क्रोधित नहीं हो सकते, क्योंकि एक नयी बात शुरू हो गयी। और मन एक साथ दो चीजें नहीं कर सकता। तुम्हारा मन अब श्वास छोड़ने, भीतर लेने, रोकने, लय निर्मित करने से भरा होता है। तुम पूरी तरह डूब चुके होते हो इसमें, इसलिए क्रोध के साथ सहयोग ट्ट जाता है-यह एक
श्वास छोड़ना और श्वास भीतर लिया जाना शुद्ध करता है सारे शरीर को। जब तुम श्वास बाहर छोड़ते हो और तीन सेकेंड तक या पांच सेकेंड तक रोके रहते हो-जितना ज्यादा तम चाहते