Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 385
________________ और इतने जाग्रत इतने सावधान हो जाते हो कि कोई तुम्हें सम्मोहित नहीं कर सकता। अब तुम , इन विषैले पुरोहितों और राजनेताओं की पहुंच से परे होते हो। अब पहली बार तुम एक व्यक्ति होते हो, और तब तुम सचेत, सावधान हो जाते हो। फिर तुम सावधानी से आगे बढ़ते हो; तुम हर कदम सावधानी से उठाते हो क्योंकि तुम्हारे चारों ओर लाखों फंदे होते हैं। 3 'आलस्य'। बहुत आलस्य तुममें इकट्ठा हो चुका है। यह कुछ कारणवश चला आता है। क्योंकि तुम कुछ करने की कोई तुक नहीं समझ पाते। और यदि तुम कुछ करते भी हो, तो कोई प्राप्ति नहीं होती। यदि तुम नहीं करते, तो कुछ गंवाया नहीं जाता। तब आलस्य हृदय में पैठ जाता है। आलस्य का मात्र इतना अर्थ है कि तुमने जीवन के प्रति उत्साह खो दिया है। 9 बच्चे आलसी नहीं होते हैं। वे ऊर्जा से लबालब भरे होते है सोने के लिए तुम्हें उन्हें मजबूर करना पड़ता है; तुम्हें उन्हें मजबूर करना पड़ता है चुप रहने के लिए तुम्हें उन्हें विवश करना पड़ता है कि वे कुछ मिनटों के लिए शांत बैठ जायें जिससे कि वे आराम कर लें तुम्हें लगता है कि वे तनावपूर्ण नहीं हैं। वे ऊर्जा से भरे हुए हैं। इतने छोटे प्राणी और इतनी ज्यादा ऊर्जा! कहां से आती है यह ऊर्जा? वे अभी हताश नहीं हैं। वे नहीं जानते कि इस जीवन में, चाहे जो भी कर लो, तुम्हें कुछ नहीं प्राप्त होता है। वे अजाग्रत होते हैं- आनंदपूर्ण अजाग्रत इसीलिए होती है इतनी ज्यादा ऊर्जा । और तुम करते रहे हो बहुत कुछ और कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है। इसीलिए आलस्य की परत जम जाती है। मानो तुममें धूल इकट्ठी होती है- तुम्हारी सारी असफलताओं और हताशाओं की धूल, हर उस सपने की धूल जो कीचड़ हो गया तो यह जम जाता है। तब तुम आलसी हो जाते हो। सुबह तुम सोचते हो, किसलिए उठे फिर? आखिर किसलिए?' कोई उत्तर नहीं है तुम्हें उठना होता है। क्योंकि किसी भी तरह रोटी तो पानी है और फिर पली है, और बच्चे हैं, और तुम जाल की पकड़ में आ गये हो। किसी तरह तुम आफिस की ओर चलते हो, जैसे-तैसे वापस लौटते हो। कोई उत्साह नहीं । तुम धकेले जाते हो कोई बात करते हुए तुम खुश नहीं होते। ओम् का जप और उस पर किया ध्यान कैसे मदद करेगा? यह मदद देता है। निश्रित ही यह बात मदद करती है क्योंकि जब पहली बार तुम ओम् का जप करते और ध्यान देते और ध्यान करते, तुम्हारे जीवन का यह ऐसा प्रयास होता है जो परिपूर्णता लाता हुआ मालूम पड़ता है। इसका जप करते हुए तुम इतनी प्रसन्नता अनुभव करते हो, इसका जप करते हुए तुम इतना आनंदमय अनुभव करते हो, कि प्रथम प्रयास सफल हुआ है। अब नया उत्साह उदित हुआ है। धूल फेंक दी गयी है एक नया साहस, एक नया विश्वास उपलब्ध हुआ है। अब तुम सोचते हो कि तुम भी कुछ कर सकते हो, तुम भी कुछ उपलब्ध कर सकते हो। हर चीज असफलता ही नहीं है। हो सकता है बाहरी यात्रा एक असफलता हो, लेकिन भीतरी यात्रा असफलता नहीं है। पहला चरण भी बहुत सारे फूलों को ले आता है। अब आशा उमग आती है।

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