Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 409
________________ नहीं, यह असंभव है। यह उतना ही असंभव है जितना कि सी और पुरुष के बीच कोई संश्लेषण खोजने का प्रयत्न करना। तब क्या बनेगा संश्लेषण ? एक तीसरा लिंग-स्व नपुंसक व्यक्ति होगा संश्लेषण। और वह न तो पुरुष होगा न ही सी। ऐसा व्यक्ति जडविहीन होगा। वह व्यक्ति कहीं का न होगा। तंत्र सर्वथा विपरीत है योग के विपरीत ध्रुव है। तुम कोई संश्लेषण निर्मित नहीं कर सकते। और ऐसी चीजों के लिए कभी प्रयत्न मत करना क्योंकि तुम अधिकाधिक भ्रमित हो जाओगे। एक ही काफी है तुम्हें भ्रमित करने को; दो तो बहुत ज्यादा होंगे। और वे विभिन्न दिशाओं की ओर ले जाते हैं। वे एक ही चोटी तक पहुंचते हैं। संश्लेषण है ऊंचाई पर, चरम शिखर पर, लेकिन पहला कदम जहां पड़ता है उस आधार पर जहां यात्रा प्रारंभ होती है, वे सर्वथा भिन्न हैं। एक जाता है पूर्व की ओर, दूसरा जाता है पश्चिम की ओर। वे एक-दूसरे को विदा कह देते हैं; परस्पर पीठ किये हु हैं। पुरुष और सी की भांति हैं उनकी मनोवृत्तियां अलग हैं। वे अपनी भिन्नता में वे सुंदर हैं। यदि तुम संश्लेषण बनाते हो, तो वह अस्त्र हो जाता है। एक सी, स्त्री ही होती है - इतनी ज्यादा सी कि वह पुरुष के लिए एक विपरीत ध्रुव बन जाती है। अ ध्रुवताओं में वे सुंदर हैं क्योंकि अपनी विपरीतताओं में वे परस्पर आकर्षित हुए रहते हैं। उनकी अपनी ध्रुवताओं में वे पूरक होते हैं, लेकिन तुम संश्लेषण नहीं कर सकते। संश्लेषण तो मात्र दुर्बल होगा, संश्लेषण तो अशक्त ही होगा। उसमें कोई बल न होगा । शिखर पर वे मिलते हैं, और वह मिलन है चरम सुख का बिंदु जब सी और पुरुष मिलते हैं, जब उनके शरीर विलीन हो जाते हैं, जब वे दो नहीं रहते, जब 'यिन' और 'यांग' एक होते हैं, तो ऊर्जा एक वर्तुल का रूप ले लेती है क्षण भर को प्राण ऊर्जा की उस पराकाष्ठा पर वे मिलते और फिर से वे दूर होते हैं। - 3 यही बात घटती है तंत्र और योग के साथ। तंत्र स्त्रैण है, योग पौरुषेय है। तंत्र है। समर्पण, योग है संकल्प । तंत्र है प्रयासविहीनता, योग है प्रयास, जबरदस्त प्रयास। तंत्र निष्क्रिय है, योग है सक्रिय तंत्र है धरती की भांति, योग है आकाश की भांति। वे मिलते हैं पर कोई संश्लेषण नहीं है। शिखर पर वे मिल जाते हैं, लेकिन आधारतल पर जहां यात्रा प्रारंभ होती है, जहां तुम सभी खड़े हो, तुम्हें मार्ग चुनना पड़ता है। मार्ग संशिलष्ट नहीं किये जा सकते हैं। और जो लोग इसके लिए प्रयत्न करते हैं, वे मानवता को भ्रमित कर देते हैं। वे दूसरों को बहुत गहरे तौर पर भ्रमित करते हैं और वे सहायक नहीं होते। वे बहुत हानिकारक होते हैं। मार्गों का संश्लेषण नहीं किया जा सकता, केवल अंत को संश्लिष्ट किया जा सकता है। एक मार्ग को दूसरे मार्ग से अलग होना ही होता है-पूर्णतया अलग, अपने पूरे भाव-रंग में

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