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वह अपनी प्रसन्नता न बांटकर तुम्हें रोक नहीं सकता है। तुरंत तुम खोल देते हो द्वार, और उसकी प्रसन्नता तुम्हारी ओर भी प्रवाहित होती है।
तुम्हारे चारों ओर स्वर्ग निर्मित कर लेने का यही राज है। और केवल स्वर्ग में तुम शांत हो सकते हो। नरक की ज्वाला में कैसे तुम शांत हो सकते हो ? और कोई दूसरा निर्मित नहीं कर रहा है उसे तुम कर रहे हो उसे निर्मित। अतः बुनियादी बात समझ लेनी है कि जब कभी दुख हो, नरक हो, तुम्हीं हो उसके कारण कभी किसी दूसरे पर जिम्मेदारी मत फेंकना क्योंकि वह जिम्मेदारी का फेंकना आधारभूत सत्य से भागना है।
यदि तुम दुखी हो, तो केवल तुम, नितांत तुम ही जिम्मेदार हो। भीतर देखो और उसका कारण ढूंढो । और कोई दुखी नहीं होना चाहता है। यदि तुम तुम्हारे स्वयं के भीतर कारण खोज लो, तो तुम उसे बाहर फेंक सकते हो। कोई तुम्हारे रास्ते में नहीं खड़ा है तुम्हें रोकने को। कोई भी बाधा नहीं है तुम्हें प्रसन्न होने से रोकने के लिए।
प्रसन्न व्यक्तियों के प्रति मैत्रीपूर्ण होने से तुम प्रसन्नता के साथ अपना स्वर साध लेते हो। वे खिल रहे है और तुम मित्रता से भर जाते हो। हो सकता है वे न हो मैत्रीपूर्ण इससे तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं। हो सकता है वे तुम्हें जानते भी न हों; इससे कुछ नहीं होता। लेकिन जहां कहीं खिलाव है, जहां आनंद है, जहां कोई खिल रहा है, जब कोई नाच रहा है और खुश है और मुस्करा रहा है, जहां कहीं उत्सव है, तुम स्नेहपूर्ण हो जाओ, तुम उसके हिस्से बन जाओ। तब वह तुम्हारे भीतर प्रवाहित होने लगता है और कोई नहीं रोक सकता उसे और जब तुम्हारे चारों ओर प्रसन्नता होती है, तुम शांत अनुभव करते हो।
प्रसन्न व्यक्ति के प्रति भावना का संवर्धन करने से मन शांत हो जाता है......
प्रसन्न व्यक्ति के साथ तुम ईर्ष्या अनुभव करते हो एक सूक्ष्म प्रतियोगिता के रूप में। प्रसन्न लोगों के साथ तुम स्वयं को निम्न अनुभव करते हो। तुम आस-पास रहने को उन लोगों को चुन लेते हो सदा जो अप्रसन्न है। तुम मित्रता बनाते हो अप्रसन्न व्यक्तियों के साथ क्योंकि अप्रसन्न व्यक्तियों के साथ तुम अपने को ऊंचा अनुभव करते हो तुम हमेशा उस किसी को चुन लेते हो जो तुमसे नीचे है तुम हमेशा अधिक ऊंचे से भयभीत हो जाते हो; तुम हमेशा किसी निम्न को चुन लेते हो। और जितना तुम ज्यादा निम्न को चुनते हो, उतना नीचे तुम गिरोगे। तब फिर और ज्यादा निम्न व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।