Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 431
________________ अनुसरण करते हो और तुम्हारी आंखें एक सूक्ष्म सम्मोहन का, एक एकाग्रता का। तुम देख रहे हो पत्थर की ओर, और हाथ उसी तरफ सरकते हैं। तुम और ज्यादा भयभीत होते जाते हो। जितने ज्यादा तम भयभीत होते हो, उतने ज्यादा तम पक्क में आ जाते हो, क्योंकि अब पत्थर कोई अनिष्टकारी शक्ति मालूम पड़ने लगता है। जैसे कि पत्थर तुम्हें खींच रहा हो। सारी सड़क भूलायी जा चुकी है, साइकिल भुला दी गयी है, सीखने वाला खो गया है। केवल वह पत्थर है वहां; तुम सम्मोहित हो गये हो। तुम जा टकराओगे पत्थर से। अब तुमने अपने मन की बात पूरी कर ली। अगली बार तुम ज्यादा भयभीत होओगे। तो फिर कैसे छुटकारा पाओगे इस चक्र से? जाओ मंदिर-मठों में और सुनो साधु-संतों को कामवासना की निंदा करते हुए। कामवासना मील का पत्थर बन चुकी है। चौबीसों घंटे वे इसके बारे में सोच रहे हैं। इससे बचने की कोशिश करना है, इसके बारे में सोचते रहना है। जितना ज्यादा तुम इससे बचने की कोशिश करते हो उतने ज्यादा तुम सम्मोहित हो जाते हो। इसीलिए पुराने शास्त्रों में यह बताया है कि जब संत एकाग्रता साध रहा होता है, तो स्वर्ग की अप्सराएं आ पहुंचती हैं, उसकी मनोदशा को भंग करने का प्रयत्न करती हैं। क्यों आकृष्ट होंगी सुंदर अप्सराएं? अगर कोई व्यक्ति आंखें मूंदे वृक्ष के तले बैठा हुआ है तो क्यों रुचि लेंगी वे सुंदरियां इस आदमी में? कोई नहीं आता कहीं से, लेकिन व्यक्ति ही कामवासना के इतना विरुद्ध होता है कि यह बात एक सम्मोहन बन जाती है। वह इतना ज्यादा सम्मोहित होता है कि अब सपने सच्चे हो जाते हैं। वह अपनी आंखें खोलता है और देखता है कि एक सुंदर नग्न स्त्री खड़ी हुई है वहां। तुम्हें कामवासना से भरी अश्लील किताब चाहिए होती है नग्न स्त्री देखने के लिए। लेकिन यदि तुम मंदिर-मठों में जाओ तो कामवासना से भरी किताब की जरूरत न रहेगी तुम्हें। चारों तरफ तुम स्वयं निर्मित कर लेते हो तुम्हारी नग्न कामवासना। और तब वह मुनि, वह व्यक्ति जो एकाग्रता साध रहा था, ज्यादा भयभीत हो जाता है। वह अपनी आंखें बंद कर लेता है और अपनी मुठियां भींच लेता है। अब वह सी भीतर खड़ी हुई है। मंदर र और तुम स्त्रियां इस धरती पर नहीं पा सकते क्योंकि वे स्वप्न की निर्मितिया हैं, सम्मोहन द्वारा उपजी हैं। और जितना ज्यादा वह भयभीत होता है, उतनी ज्यादा वे वहां होती हैं। वे उसके शरीर के साथ आ सटेंगी, वे उसके सिर का स्पर्श करेंगी। वे उससे चिपक जायेंगी और उसे आलिंगनबद्ध करेंगी। वह तो पूर्णतया पागल हुआ है, पर ऐसा घटता है। ऐसा तुम्हें भी घट रहा है। मात्राओं का भेद हो सकता है, लेकिन ऐसा ही है कुछ जो घट रहा है। जिस-किसी के तुम विरुद्ध होते हो,गहरे तल पर उसके साथ जुड़ जाओगे। किसी चीज के विरुद्ध मत होना। बुराई के विरुदध होना उसी का शिकार हो जाना है। तब तुम बुराई के हाथ पड़ रहे होते हो। तटस्थता बनाये रखना। यदि तुम तटस्थता का अनुसरण करते हो, इसका अर्थ हुआ कि जो कुछ घट रहा है उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं। कोई चोरी कर रहा है तो

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