Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ विद्वान पंडित में विश्वास रखता था, और वे सभी कहने लगे, 'हमारे प्रतिभा संपन्न विशिष्ट व्यक्ति ने कहा है कि वह नासमझ है, तो वह ऐसा जरूर होगा ही।' __ लोग हमेशा नकारात्मक में आसानी से विश्वास कर लेते है क्योंकि 'नहीं' को असिद्ध करना बहुत कठिन होता है। कैसे तुम सिद्ध कर सकते हो कि जीसस ईश्वर का बेटा है? कैसे करोगे तुम इसे प्रमाणित? दो हजार वर्ष हो चले और ईसाई धर्म-शाख सिद्ध करता आ रहा है इसे बिना सिद्ध किये हुए ही। लेकिन कुछ ही पलों के भीतर यह सिद्ध हो गया था कि वह अपराधी है, आवारा आदमी, और उन्हें मार दिया गया-कुछ ही पलों में। कहा था किसी ने, 'मैंने इस आदमी को वेश्या के घर से बाहर आते देखा था।' बस खत्म! किसी ने यह जानने की परवाह नहीं की थी कि यह व्यक्ति जो कह रहा है, 'मैने देखा है',विश्वास करने योग्य है या नहीं? किसी ने नहीं की परवाह। नकारात्मक का सदा ही सरलता से विश्वास कर लिया जाता है क्योंकि वह तुम्हारे अहंकार को पोषित कर रहा होता है। विधायक पर विश्वास नहीं होता। तुम नकार सकते हो जब कहीं अच्छाई होती है। पर तुम अच्छे व्यक्ति को हानि नहीं पहुंचा रहे हो, तुम अपने को ही हानि पहुंचा रहे होते हो। तुम आत्म-घातक हो। तुम वस्तुत: धीमी आत्महत्या कर रहे हो, स्वयं को विषाक्त कर रहे हो। जब तुम कहते हो, 'यह आदमी अच्छा नहीं है, वह आदमी भला नहीं है, तो वस्तुत: तुम क्या निर्मित कर रहे होते हो? तुम एक वातावरण निर्मित कर रहे हो जिसमें तुम विश्वास कर पाओ कि अच्छाई असंभव ही है। और जब अच्छाई असंभव होती है, तो कोई जरूरत नहीं होती उसके लिए प्रयास करने की। तब तुम नीचे गिर जाते हो। तब तुम वहीं ठहर जाते हो जहां तुम होते हो। विकास असंभव हो जाता है। और तुम जड़ होना, ठहर जाना चाहोगे, लेकिन तब तुम दुख में विजड़ित होते हो क्योंकि तुम दुखी हो। तुम सब पूरी तरह ठहर चुके हो। यह ठहरना, यह जड़ता तोड़नी है; तुम्हें अपनी जगह से हिलना है। जहां भी तुम हो वहां से तुम्हें उखडूना होता है और अधिक ऊंचे तल पर पुनआरोपित होना होता है। और यह तभी संभव होता है जब तुम गुणवान के प्रति प्रसन्नता अनुभव करते हो। पुण्यवान के प्रति मुदिता (प्रसन्नता) और बुरे के प्रति उपेक्षा। निंदा भी मत करना बुराई की। निंदा करने का प्रलोभन तो होगा। तुम अच्छाई की भी निंदा करना चाहोगे। लेकिन पतंजलि कहते है बुराई की निदामत करना। क्यों? वे मन के आंतरिक गतितंत्र को जानते है कि यदि तुम बुराई की बहुत ज्यादा निंदा करते हो, तो तुम बहुत ज्यादा ध्यान देते हो बुराई पर। और धीरे-धीरे तुम ताल-मेल बिठा लेते हो उसके साथ,जिस किसी पर तुम ध्यान देते

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467