Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 427
________________ वह तुरंत प्रभावित हो सकता है। उसके चारों ओर उसके पास अभी कोई बचाव नहीं है। और अगर बच्चा वास्तव में स्वस्थ हो जाता है, तो माता-पिता ज्यादा कठिनाई में पड़ जायेंगे। क्योंकि तब कहीं कोई बहाना नहीं है। यह एक अंतरंग समुदाय है। तुम यहां एक परिवार के रूप में रहते हो। बहुत सारे तनाव होंगे ही, इसलिए सजग रहना। उन तनावों के प्रति सचेत रहना क्योंकि तुम्हारे तनाव एक शक्ति निर्मित कर सकते हैं। वे संचित हो सकते हैं और अकस्मात ही जो व्यकि दुर्बल हो, भेदय हो, सीधासरल, वह आश्रय स्थल बन सकता है संचित शक्ति के लिए। तब वह किसी न किसी ढंग से प्रतिक्रिया करेगा ही। और तब तुम सब उस पर जिम्मेदारी लाद सकते हो। लेकिन ऐसा ठीक नहीं है। अगर तुमने कभी प्रतिरोध अनुभव किया हो, तो तुम उसका हिस्सा होते हो। और यही बात सच होती है ज्यादा बड़े संसार में भी। गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी, तो भी मैं कभी नहीं कहता कि गोडसे जिम्मेदार है। वह दुर्बलतम कड़ी था; यह बात सच है। पर सारा हिंदू मानस था जिम्मेदार। गांधी के विरुद्ध धाराएं थीं हिंदू प्रतिरोध की। यह भाव कि वे मुसलमानों की ओर हैं, संचित हो रहा था। यह एक वास्तविक घटना है। विरोध: संचित हो जाता है। बादल की भांति यह मंडराता है। और फिर कहीं कोई कमजोर हृदय, कोई बहुत अरक्षित व्यक्ति शिकार बन जाता है। बादल उसमें एक आधार पा लेते हैं और फिर स्फोट। और तब हर कोई मक्त हो जाता है। गोडसे जिम्मेदार है गांधी की हत्या करने के लिए अत: तुम मार सकते हो गोडसे को और खत्म कर सकते हो बात। तो सारा देश एक ही ढंग से चलता है, और हिंदू-मन वही बना रहता है। कोई परिवर्तन नहीं। सूक्ष्म है नियम। हमेशा खोज लेना मन के गति-वितान को। केवल तभी तुम्हारा रूपांतरण होगा; अन्यथा नहीं। 'मन शांत होता है आनंदित के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यवान के प्रति मुदिता...।' जरा ध्यान दो। पतंजलि सीढ़ियां बना रहे हैं। सुंदर और बहुत सूक्ष्म सीढ़ियां, लेकिन एकदम वैज्ञानिक।'पुण्यवान के प्रति प्रसन्नता, पापी के प्रति उपेक्षा।'जब तुम अनुभव करते हो कि कोई भला, धार्मिक व्यक्ति है, प्रसन्नचित्त है, तो साधारण रवैया यही होता है कि वह जरूर धोखा दे रहा होगा। कैसे कोई तुमसे ज्यादा भला हो सकता है? इसलिए इतनी ज्यादा आलोचना चलती रहती है। ___ जब कभी कोई ऐसा व्यक्ति होता है जो कि भला और गुणवान होता है, तुम तुरंत आलोचना करना शुरू कर देते हो, तुम उसकी बुराइयां खोजने में लग जाते हो। किसी न किसी तरह तुम्हें उसे नीचे लाना होता है। वह भला आदमी हो नहीं सकता। तुम यह मान नहीं सकते। पतंजलि कहते हैं, 'पुण्यवान के प्रति प्रसन्नता', क्योंकि अगर तुम पुण्यवान व्यक्ति की आलोचना करते हो,तो गहरे तल पर तुम पुण्य की आलोचना कर रहे होते हो। अगर तम अच्छे आदमी की आलोचना कर रहे हो, तो

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